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कुमाऊँनी में कसप का अर्थ है क्या जाने। मनोहर श्याम जोशी का कुरु-कुरु स्वाहा एनो मीनिंग सूँ?’ का सवाल लेकर आया था, वहाँ कसप जवाब के तौर पर क्या जानेकी स्वीकृति लेकर प्रस्तुत हुआ।  किशोर प्रेम की नितान्त सुपरिचित और सुमधुर कहानी को कसप में एक वृद्ध प्राध्यापक किसी अन्य (कदाचित् नायिका के संस्कृतज्ञ पिता) की संस्कृत कादम्बरी के आधार पर प्रस्तुत कर रहा है। मध्यवर्गीय जीवन की टीस को अपने पंडिताऊ परिहास में ढालकर यह प्राध्यापक मानवीय प्रेम को स्वप्न और स्मृत्याभास के बीचोबीच फ्रीजकर देता है।

कसप लिखते हुए मनोहर श्याम जोशी ने आंचलिक कथाकारों वाला तेवर अपनाते हुए कुमाऊँनी हिन्दी में कुमाऊँनी जीवन का जीवन्त चित्र आँका है। यह प्रेमकथा दलिद्दर से लेकर दिव्य तक का हर स्वर छोड़ती है लेकिन वह ठहरती हर बार उस मध्यम पर है जिसका नाम मध्यवर्ग है। एक प्रकार से मध्यवर्ग ही इस उपन्यास का मुख्य पात्र है। जिन सुधी समीक्षकों ने कसप को हिन्दी के प्रेमाख्यानों में नदी के द्वीप के बाद की सबसे बड़ी उपलब्धि ठहराया है, उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि जहाँ नदी के द्वीप का तेवर बौद्धिक और उच्चवर्गीय है, वहाँ कसप का दार्शनिक ढाँचा मध्यवर्गीय यथार्थ की नींव पर खड़ा है। इसी वजह से कसप में कथावाचक की पंडिताऊ शैली के बावजूद एक अन्य ख्यात परवर्ती हिन्दी प्रेमाख्यान गुनाहों का देवता जैसी सरसता, भावुकता और गजब की पठनीयता भी है। पाठक को बहा ले जानेवाले उसके कथा-प्रवाह का रहस्य लेखक के अनुसार यह है कि उसने इसे ‘‘चालीस दिन की लगातार शूटिंग में पूरा किया है।’’ कसप के सन्दर्भ में सिने शब्दावली का प्रयोग सार्थक है क्योंकि न केवल इसका नायक सिनेमा से जुड़ा हुआ है बल्कि कथा-निरूपण में सिनेमावत् शैली प्रयोग की गई है।

1910 की काशी से लेकर 1980 के हॉलीवुड तक की अनुगूँजों से भरा, गँवई गाँव के एक अनाथ, भावुक, साहित्य-सिनेमा अनुरागी लड़के और काशी के समृद्ध शास्त्रियों की सिरचढ़ी, खिलन्दड़ दबंग लड़की के संक्षिप्त प्रेम की विस्तृत कहानी सुनानेवाला यह उपन्यास एक विचित्र-सा उदास-उदास, मीठा-मीठा-सा प्रभाव मन पर छोड़ता है। ऐसा प्रभाव जो ठीक कैसा है, यह पूछे जाने पर एक ही उत्तर सूझता हैकसप।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1982
Edition Year 2022, Ed. 8th
Pages 312p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2
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Manohar Shyam Joshi

Author: Manohar Shyam Joshi

मनोहर श्याम जोशी 

जन्म : 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में।

लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावज़ूद रोज़ी-रोटी की ख़ातिर छात्र-जीवन से ही लेखक और पत्रकार बन गए। अमृतलाल नागर और अज्ञेय—इन दो आचार्यों का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ। स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बेरोज़गारी के अनुभव बटोरने के बाद 21 वर्ष की उम्र से वह पूरी तरह मसिजीवी बन गए।

प्रेस, रेडियो, टी.वी. वृत्तचित्र, फ़िल्म, विज्ञापन-सम्प्रेषण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो। खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने क़लम न उठाई हो। आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने से हमेशा रोकता रहा है। पहली कहानी तब छपी जब वह अठारह वर्ष के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति तब प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्ष के होने को आए।

केन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह से होते हुए सन् ’67 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक’ बने और वहीं एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक का भी सम्पादन किया। टेलीविज़न धारावाहिक ‘हम लोग’ लिखने के लिए सन् ’84 में सम्पादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से आजीवन स्वतंत्र लेखन करते रहे।

प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘कुरु-कुरु स्वाहा’, ‘कसप’, ‘हरिया हरक्यूलीज की हैरानी’, ‘हमज़ाद’, ‘क्याप’, ‘ट-टा प्रोफ़ेसर’ (उपन्यास); ‘नेताजी कहिन’ (व्यंग्य); ‘बातों-बातों में’ (साक्षात्कार); ‘एक दुर्लभ व्यक्तित्व’, ‘कैसे क़िस्सागो’, ‘मन्दिर घाट की पैड़ियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘आज का समाज’ (निबन्ध); ‘पटकथा-लेखन : एक परिचय’ (सिनेमा)। टेलीविज़न धारावाहिक : ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’, ‘कक्काजी कहिन’, ‘हमराही’, ‘ज़मीन-आसमान’। फ़िल्म : ‘भ्रष्टाचार’, ‘अप्पू राजा’ और ‘निर्माणाधीन ज़मीन’।

सम्मान : उपन्यास ‘क्याप’ के लिए वर्ष 2005 के ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ सहित ‘शलाका सम्मान’ (1986-87); ‘शिखर सम्मान’ (अट्टहास, 1990); ‘चकल्लस पुरस्कार’ (1992); ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ (2000) आदि।

निधन : 30 मार्च, 2006

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