Kuru-Kuru Swaha

As low as ₹269.10 Regular Price ₹299.00
You Save 10%
In stock
Only %1 left
SKU
Kuru-Kuru Swaha
- +

नाम बेढब, शैली बेडौल, कथानक बेपेंदे का। कुल मिलाकर बेजोड़ बकवास। अब यह पाठक पर है कि ‘बकवास’ को ‘एब्सर्ड’ का पर्याय माने या न माने।

पहले शॉट से लेकर फ़ाइनल फ़्रीज तक यह एक कॉमेडी है, लेकिन इसी के एक पात्र के शब्दों में : “एइसा कॉमेडी कि दर्शिक लोग जानेगा, केतना हास्यास्पद है त्रास अउर केतना त्रासद है हास्य।”

उपन्यास का नायक है मनोहर श्याम जोशी, जो इस उपन्यास के लेखक मनोहर श्याम जोशी के अनुसार सर्वथा कल्पित पात्र है। यह नायक तिमंज़िला है। पहली मंज़िल में बसा है—मनोहर-श्रद्धालु-भावुक किशोर। दूसरी मंज़़िल में ‘जोशी जी’ नामक इंटेलेक्चुअल और तीसरी में दुनियादार श्रद्धालु ‘मैं’ जो इस कथा को सुना रहा है।

नायिका है पहुँचेली—एक अनाम और अबूझ पहेली, जो इस तिमंज़िला नायक को धराशायी करने के लिए ही अवतरित हुई है।

नायक-नायिका के चारों ओर है बम्बई का बुद्धिजीवी और अपराधजीवी जगत।

‘कुरु-कुरु स्वाहा’...में कई-कई कथानक होते हुए भी कोई कथानक नहीं है, भाषा और शिल्प के कई-कई तेवर होते हुए भी कोई तेवर नहीं है, आधुनिकता और परम्परा की तमाम अनुगूँजें होते हुए भी कहीं कोई वादी-संवादी स्वर नहीं है। यह एक ऐसा उपन्यास है, जो स्वयं को नकारता ही चला जाता है।

यह मज़ाक़ है, या तमाम मज़ाक़ों का मज़ाक़, इसका निर्णय हर पाठक अपनी श्रद्धा और अपनी मनःस्थिति के अनुसार करेगा।

बहुत ही सरल ढंग से जटिल और बहुत ही जटिल ढंग से सरल यह कथाकृति सुधी पाठकों के लिए विनोद, विस्मय और विवाद की पर्याप्त सामग्री जुटाएगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1980
Edition Year 2019, Ed. 6th
Pages 208p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Kuru-Kuru Swaha
Your Rating
Manohar Shyam Joshi

Author: Manohar Shyam Joshi

मनोहर श्याम जोशी 

जन्म : 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में।

लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावज़ूद रोज़ी-रोटी की ख़ातिर छात्र-जीवन से ही लेखक और पत्रकार बन गए। अमृतलाल नागर और अज्ञेय—इन दो आचार्यों का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ। स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बेरोज़गारी के अनुभव बटोरने के बाद 21 वर्ष की उम्र से वह पूरी तरह मसिजीवी बन गए।

प्रेस, रेडियो, टी.वी. वृत्तचित्र, फ़िल्म, विज्ञापन-सम्प्रेषण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो। खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने क़लम न उठाई हो। आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने से हमेशा रोकता रहा है। पहली कहानी तब छपी जब वह अठारह वर्ष के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति तब प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्ष के होने को आए।

केन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह से होते हुए सन् ’67 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक’ बने और वहीं एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक का भी सम्पादन किया। टेलीविज़न धारावाहिक ‘हम लोग’ लिखने के लिए सन् ’84 में सम्पादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से आजीवन स्वतंत्र लेखन करते रहे।

प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘कुरु-कुरु स्वाहा’, ‘कसप’, ‘हरिया हरक्यूलीज की हैरानी’, ‘हमज़ाद’, ‘क्याप’, ‘ट-टा प्रोफ़ेसर’ (उपन्यास); ‘नेताजी कहिन’ (व्यंग्य); ‘बातों-बातों में’ (साक्षात्कार); ‘एक दुर्लभ व्यक्तित्व’, ‘कैसे क़िस्सागो’, ‘मन्दिर घाट की पैड़ियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘आज का समाज’ (निबन्ध); ‘पटकथा-लेखन : एक परिचय’ (सिनेमा)। टेलीविज़न धारावाहिक : ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’, ‘कक्काजी कहिन’, ‘हमराही’, ‘ज़मीन-आसमान’। फ़िल्म : ‘भ्रष्टाचार’, ‘अप्पू राजा’ और ‘निर्माणाधीन ज़मीन’।

सम्मान : उपन्यास ‘क्याप’ के लिए वर्ष 2005 के ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ सहित ‘शलाका सम्मान’ (1986-87); ‘शिखर सम्मान’ (अट्टहास, 1990); ‘चकल्लस पुरस्कार’ (1992); ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ (2000) आदि।

निधन : 30 मार्च, 2006

Read More
Books by this Author
Back to Top