Patanjali Aur Ayurvedic Yoga-Hard Cover

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ISBN:9788183618748
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आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धान्तों के अनुसार, पित्त और कफ में से किसी एक के असन्तुलन से मानसिक अवस्था में तो परिवर्तन आता ही है, उससे शरीर पर कई बुरे प्रभाव पड़ते हैं। पतंजलि योग में वर्णित अष्टांग योग के प्रथम तीन अंगों—यम, नियम और आसन से त्रिदोष सन्तुलन में बड़ी सहायता मिलती है।

योग और आयुर्वेद दोनों ही मूल रूप से शरीर से सम्बन्धित हैं। इनके आधारभूत सिद्धान्त सांख्य पर आधारित हैं आयुर्वेदिक योग पतंजलि के अष्टांग योग से ही ग्रहण किया गया है। इसका आधारभूत उद्देश्य है—अच्छा स्वास्थ्य, शारीरिक-मानसिक सन्तुलन और जीवन का सम्पूर्ण आनन्द। डॉ. विनोद वर्मा की इस पुस्तक का उद्देश्य योग और आयुर्वेद दोनों के माध्यम से शरीर को स्वस्थ रखना है। दूसरा उद्देश्य प्राचीन ज्ञान सागर से ऐसी नई एवं सरल विधियों का विकास करना है जिनसे मानव स्वास्थ्य, शान्ति और सौमनस्य प्राप्त कर सके।

इस पुस्तक को पाँच खंडों में विभाजित किया गया है। पहले खंड में भारतीय परम्परा : योग और आयुर्वेद पर प्रकाश डाला गया है। दूसरे खंड में पतंजलि के योग सूत्रों की व्याख्या की गई है और तीसरे खंड में आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धान्त तथा चौथे खंड में योग और आयुर्वेद का एकीकरण एवं पाँचवें खंड में आयुर्वेद योग पर विस्तृत चर्चा की गई है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 260p
Price ₹595.00
Translator Ramchandra Tiwari
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Vinod Verma

Author: Vinod Verma

विनोद वर्मा

डॉ. वर्मा का जन्म और पालन-पोषण एक ऐसे परिवार में हुआ जिसके हर रोज़ के क्रियाकलाप में ‘योग’ और ‘आयुर्वेद’ की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने अपने पिता से यौगिक प्रक्रियाओं की शिक्षा प्राप्त की और अपनी दादी माँ द्वारा जीवन में आयुर्वेद को आत्मसात् हुआ। डॉ. वर्मा की दादी माँ को स्त्रियों और बच्चों के उपचार की स्वाभाविक योग्यता प्राप्त थी। पारिवारिक परम्परा के बावजूद डॉ. वर्मा ने आधुनिक चिकित्साशास्त्र के अध्ययन का निश्चय किया और डॉक्टर की दो उपाधियाँ अर्जित कीं—पंजाब विश्वविद्यालय से प्रजनन जीवविज्ञान (Reproduction Biology) में और पेरिस की Universite de Pierre et Marie Curie से तंत्रिका जीवविज्ञान (Neurobiology) में। तंत्रिका जीवविज्ञान के क्षेत्र में डॉ. वर्मा ने उन्नतिशील शोधकार्य किया—पहले National Institute of Health, Bethesda (USA) में और फिर Max-Planck Institute, Germany में। जर्मनी की एक औषधीय कम्पनी में चिकित्सा सम्बन्धी शोध के दौरान डॉ. वर्मा ने स्पष्ट अनुभव किया कि निरोग अवधान सम्बन्धी नवीनतम दृष्टिकोण विखंडित है, फिर भी हम लोग स्वास्थ्य-सम्पोषण को छोड़कर केवल बीमारियों के इलाज पर ही अपने सारे साधन और प्रयास लगाए जा रहे हैं। इस उद्देश्य के लिए डॉ. वर्मा ने ‘Now’ (The New Way Health Organization) की स्थापना की, ताकि इसके द्वारा वह स्वास्थ्यप्रद पवित्र जीवन-शैली, स्वास्थ्य की देखभाल के लिए निरोधी उपायों और दूसरे स्वावलम्बी तरीक़ों के विषय में जानकारी लोगों तक पहुँचा सकें।

पिछले कई वर्षों से डॉ. वर्मा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के आचार्य प्रियव्रत शर्मा के साथ प्राचीन गुरु-शिष्य परम्परा के अनुसार आयुर्वेदिक ग्रन्थों का अध्ययन कर रही हैं। इसके अलावा वह मानव जातीय और लोक साहित्यिक आयुर्वेदिक परम्परा के क्षेत्र में शोध करती रही हैं ताकि साधारण आयुर्वेदिक उपचार के घरेलू नुस्खों का पता लगाया जा सके।

डॉ. वर्मा के अनेक वैज्ञानिक शोध-लेख अन्तरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आयुर्वेद एवं योग आदि पर उनके पाँच ग्रन्थ भी विभिन्न यूरोपीय भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।

डॉ. वर्मा हर वर्ष कुछ महीने विदेश में बिताती हैं जहाँ आयुर्वेद और योग द्वारा स्वास्थ्य तथा दीर्घायु जैसे विषयों पर उनके भाषण, कार्य-शिविर तथा अन्य कार्यक्रम अत्यन्त लोकप्रिय हैं।

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