इनसान अपना गाँव-देहात छोड़कर, रोज़ी-रोटी या कारोबार के चक्कर में किसी और शहर में आ बसता है। वहाँ की संस्कृति-विशेष, रहन-सहन, बोलचाल में घुल-मिल जाता है और उसी शहर में अपनी जड़ें जमा लेता है। यही होता है, अकसर होता है, अधिकतर होता है। पंजाब के गाँव-देहात की ज़मीन में उगा राजिन्दर परिवार जब ’84 के दंगे के सिख-विरोधी दंगों के चलते दिल्ली से उखड़कर कलकत्ता जैसे महानगर में पनाह लेता है और अपना छोटा-मोटा कारोबार भी जमा लेता है, तो यह शहर भी उसका अपना हो जाता है। परिवार का नौजवान बेटा, कुलदीप, अपने बंगाली मित्र राना की बहन रिमझिम से प्यार करने लगता है। मगर उनके भरे-पूरे ख़ुशहाल परिवार पर मौत की छाया तब उतर आती है, कि कलकत्ता घूमने आए राजिन्दर के बेटे और जीजा को आतंकवादी समझकर पंजाब पुलिस गोलियों से भून डालती है। इस अन्याय, अत्याचार और बेईमानी की आग में समूचा का समूचा परिवार जलकर भस्म हो जाता है। इस प्रतिकारहीन अँधेरे में नौजवान वर्ग का प्रतिनिधि कुलदीप, एक बूँद उजास की तलाश में दिशाहीन हो उठता है। उसका मोहभंग होता है। उसे अहसास होता है कि अपना गाँव–देस ही शायद उसकी पनाह है, बाक़ी हर जगह परदेस है, जहाँ वे महज़ प्रवासी हैं। कुलदीप वापस अपने गाँव जाने का फ़ैसला करता है, मगर तभी कुछेक जलते हुए सवाल उसे घेर लेते हैं—वहाँ जाकर भी क्या वह भूमिपुत्र हो सकेगा? अपनी ही नज़रों में क्या वह अजनबी नहीं होगा? इन तमाम सवालों का जवाब है, कथाकार सुचित्रा भट्टाचार्य का विस्मयकारी उपन्यास—‘परदेस’।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2000
Edition Year 2022, Ed 2nd
Pages 131p
Translator Sushil Gupta
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Suchitra Bhattacharya

Author: Suchitra Bhattacharya

सुचित्रा भट्टाचार्य

जन्म : 10 जनवरी, 1950

कॉलेज जीवन में ही विवाह। सरकारी नौकरी।

बचपन से ही साहित्य से गहरा लगाव। सन् ’60 के दशक के उत्तरार्द्ध में लेखन की शुरुआत। जीवन के विविध पक्षों और समस्याओं पर सशक्त पकड़ रखने के साथ-साथ, ख़ासकर औरत की व्यथा-कथा, समस्या, यंत्रणा और उपलब्धियों की जीवन्त तसवीर आँकने में विशेष सिद्धहस्त। उनका लेखन इनसानी रिश्तों और उनकी आपसी जटिलताओं की बार-बार वकालत करता है।

प्रमुख कृतियाँ : ‘मैं हूँ रायकिशोरी’, ‘हेमन्त का पंछी’, ‘ध्वंसकाल’, ‘दहन’, ‘परदेस’, ‘अपने लोग’  (उपन्यास); ‘खाँचा’, ‘मैना-तदन्त’, ‘एइ माया’ (कहानी-संग्रह)।

‘यही है ज़िन्दगी...’ उपन्यास ‘देश’ पत्रिका में धारावाहिक रूप में प्रकाशित। बहुचर्चित और बहुप्रशंसित। कई कृतियों पर फ़ि‍ल्‍म एवं टीवी सीरियल का निर्माण। विभिन्‍न देशी-विदेशी भाषाओं में अनेक रचनाएँ अनूदित।

सम्मान : ‘नंजनगुडु तिरुमलम्बा पुरस्कार’, ‘ताराशंकर पुरस्कार’, ‘साहित्य सेतु पुरस्कार’, ‘कथा पुरस्कार’ आदि कई पुरस्कारों से सम्मानित।

निधन : 12 मई, 2015

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