Pandwani : Mahabharat Ki Ek Lok Natya Shaily

Edition: 2014, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Pandwani : Mahabharat Ki Ek Lok Natya Shaily
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‘पंडवानी’ छत्तीसगढ़ का प्रमुख लोकनाट्य है जो महान आख्यान ‘महाभारत’ पर आधारित है। पंडवानी का अर्थ है पांडवों की कथा। यह एकपात्रीय नाट्यरूप है जिसे पुरुष एवं महिलाएँ दोनों वर्गों के कलाकार प्रस्तुत करते हैं।

‘पंडवानी’ का स्वरूप आरम्भ में गाथा रूप में था, जिसे परधान गोंड गाते थे। परधानों से यह गाथा सम्पूर्ण गोंडवाना में प्रचलित हुई। कलाकारों की एक अन्य घुमन्तू जाति देवारों ने इसे परधानों से अपनाया और उनके द्वारा यह सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में फैल गई।

19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में इस गाथा का विकास लोकनाट्य रूप में होने लगा और बीसवीं शताब्दी में पूर्ण रूप से नाट्यरूप में विकसित होकर स्थापित हो गई। हालाँकि इसका आरम्भिक स्वरूप आज भी मंडला-डिंडोरी क्षेत्र में विद्यमान है।

दरअसल, महाभारत से प्रेरित सम्पूर्ण भारत में अनेक नाट्यों एवं कलारूपों का विकास हुआ है। महावर जी की ‘पंडवानी’ न केवल इसके भिन्न रूपों की विस्तार से चर्चा करती है बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि ‘पंडवानी’ की मूल गाथा तो महाभारत है लेकिन लोकरंजन एवं स्थानीय प्रभाववश इसमें लोककथाएँ, लोकनायक और स्थानों के नाम का कवित्त में समावेश प्राय: कर लिया जाता है।

महावर जी की ‘पंडवानी’ के अनुसार कालान्तर में इस नाट्यरूप की विकास-यात्रा में गायकों ने—सबल सिंह चौहान के महाभारत को आधार बना लिया और इसके गोंड कथानक का परित्याग कर दिया। व्यापक शोध एवं रुचि से लिखी गई यह किताब न केवल पंडवानी बल्कि छत्तीसगढ़ की अन्य लोक परम्पराओं से भी हमारा परिचय कराती है।

यह किताब पंडवानी के विश्वप्रसिद्ध कलाकार तीजन बाई, झाडुराम देवांगन, पुनाराम निषाद एवं अन्य कलाकारों की चर्चा के साथ यह भी बताती है कि वर्तमान में, छत्तीसगढ़ में, पंडवानी का विस्तार हो रहा है और इस विकासमान धारा में पंडवानी के दर्जनों कलाकार सक्रिय हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 116p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Niranjan Mahawar

Author: Niranjan Mahawar

निरंजन महावर

निरंजन महावर ने वर्ष 1960 में सागर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि अर्जित की और 1962 में अपने पारिवारिक व्यवसाय राइस मिल की देखरेख के लिए बस्तर चले गए। बस्तर में आप आदिवासियों की जीवन-शैली से आकर्षित हुए और आदिवासी कला और संस्कृति के विविध पक्षों पर प्रलेखन आरम्भ किया। इसके साथ ही जनजातीय मिथक, लोक साहित्य तथा विविध जीवन-पद्धतियों पर भी कार्य करना आरम्भ किया। पिछले चार दशक से भी अधिक अवधि के अपने कार्यों के आधार पर आपने जनजातीय और लोक-कलाओं पर पाँच, लोकनाट्य पर आठ, जनजातीय अध्ययन पर चार मोनोग्राफ और लोकगीत, लोककथा आदि पर चार पुस्तकों की रचना की है जो क्रमश: प्रकाशनाधीन हैं।

श्री महावर के पास बस्तर के जनजातीय धातु-शिल्प के अलावा उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल से संकलित कलाकृतियों का एक अनुपम संकलन विद्यमान है।

इन्होंने भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के बस्तर स्थित संग्रहालय को मध्य भारत से संकलित लगभग 600 टेराकोटा वस्तुएँ उपहारस्वरूप प्रदान की हैं।

गतिविधियाँ : मध्य प्रदेश आदिवासी लोककला परिषद् की कार्यकारिणी में बतौर जनजाति विशेषज्ञ आठ वर्षों तक सदस्य रहे। परिषद् द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘चौमासा’ के सलाहकार मंडल में 20 वर्षों तक कार्य तथा दक्षिण-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के लोक जनजातीय संस्कृति के विशेषज्ञ के रूप में भी आठ वर्षों तक सेवाएँ दे चुके हैं।

प्रकाशित कृतियाँ : बस्तर ब्रांजेस : ट्रायबल रिलिजन एंड आर्ट; पंडवानी : ए फोक थियेटर बेस्ड ऑन इपिक महाभारत; ट्रायबल मिथ्स ऑफ़ उड़ीसा (हिन्दी में अनूदित); कल्चरल प्रोफ़ाइल ऑफ़ साउथ कोसला।

सम्प्रति : उत्तर भारतीय भाषाओं के लोक साहित्य पर एक विश्वकोश को अन्तिम रूप देने में व्यस्त हैं।

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