यह ग्रन्थ छत्तीसगढ़ की प्रदर्शनकारी कलाओं पर केन्द्रित है, जिसमें छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख लोकनृत्य, गीत एवं लोकनाट्यों का प्रलेखन किया गया है।
छत्तीसगढ़ की लोककलाएँ अत्यन्त समृद्ध हैं। वे एक सामुदायिक जीवन की धन्यता का उत्सव और उसका मंगलगान हैं।
पुस्तक में लेखक ने छत्तीसगढ़ की ग्रामीण लोककलाओं के साथ इस क्षेत्र में प्रचलित जनजातीय समुदायों की नृत्य-नाट्य परम्पराओं पर भी विचार किया है। एक सांस्कृतिक क्षेत्र के रूप में छत्तीसगढ़ का यह कला-अध्ययन व्यापक रूप में इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक परिवेश और पर्यावरण तथा प्राचीन भारतीय इतिहास में अपनी सांस्कृतिक पहचान की स्मृतियों को सँजोता है।
जिन प्रमुख कला-रूपों को पुस्तक में अभिलेखित किया गया है, उनमें सेला नृत्य, भोजली, ददरिया, डंडा नाच, भतरा नाच और पंडवानी सहित सभी लोक-शैलियों को शामिल किया गया है।
लोक भाषाओं के साथ जनजातीय बोलियों में भी विविध नृत्यों और सम्बद्ध गीत-परम्परा के कुछ सुन्दर उदाहरण महावर जी ने इस ग्रन्थ में शामिल किए हैं।
यह किताब छत्तीसगढ़ की लोकधर्मी नृत्य-नाट्य तथा गायन-परम्पराओं के विभिन्न कला-रूपों को विस्तार से समझने के साथ उसका विश्लेषणपरक अध्ययन भी प्रस्तुत करती है।
हमें आशा है कि पाठकों को यह ग्रन्थ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा से अवगत कराने में सफल होगा।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2014 |
Edition Year | 2014, Ed. 1st |
Pages | 188p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1.5 |