भारतीय रंगमंच, विशेषतया, हिन्दी रंगमंच में पहली बार एक रंगकर्मी द्वारा कला, रंगमंच, नाटक और कथा-साहित्य से जुड़े अलग-अलग सवालों से साक्षात्कार करानेवाली एक ज़रूरी किताब–'पहला रंग', जिसमें केवल समसामयिक सन्दर्भों को ही विश्लेषित नहीं किया गया है, बल्कि 'नाट्यशास्त्र' से लेकर आज तक की सुदीर्घ रंगयात्रा के भीतर से उभरनेवाली जिज्ञासाओं, दुविधाओं और अवधारणाओं को एक नए और व्यावहारिक दृष्टिकोण से जाँचने-परखने की कोशिश भी की गई है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि भले ही कुछ विषय पहले से जाने-पहचाने हों, लेकिन उनका आकलन करनेवाली दृष्टि बिलकुल निजी एवं मौलिक है और इसीलिए एक ताज़गी का एहसास कराती है। एक साथ सिद्धान्त, इतिहास और उसी के साथ-साथ रंग निर्देशकों की प्रस्तुति-प्रक्रिया को समेटकर चलने से जो समग्र एवं व्यापक फलक प्राप्त होता है, वह अभी तक की भारतीय रंग-आलोचना में बहुत कम देखा गया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 1999 |
Edition Year | 2021, Ed. 3rd |
Pages | 191p |
Price | ₹595.00 |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |