रंगमंच के विविध पहलुओं पर रोशनी डालती विख्यात नाट्य-चिन्तक व निर्देशक देवेन्द्र राज अंकुर की यह पुस्तक उनकी पहली पुस्तकों की ही तरह हिन्दी में आधुनिक नाट्य-विमर्श की कमी को पूरा करती है।
देवेन्द्र राज अंकुर गत कई दशकों से भारतीय रंगमंच और ख़ास तौर से हिन्दी थिएटर के साथ गहराई से जुड़े रहे हैं। नाटक में लेखन से लेकर उसकी प्रस्तुति तक के विभिन्न पड़ावों को लेकर वे लगातार विचार करते रहे हैं। विभिन्न नाटकों की प्रस्तुतियों के विश्लेषण तथा थिएटर के इतिहास और वर्तमान की विभिन्न समस्याओं पर उन्होंने निर्णायक विचार हिन्दी जगत को दिए हैं।
इस पुस्तक में उन्होंने जिन विषयों को उठाया है, उनमें कुछ प्रमुख हैं—‘नाटक की दर्शकीयता’, ‘नाटक का अध्ययन और अध्यापन’, ‘रंगमंच और नाटक’, ‘हिन्दी में मौलिक नाटक लेखन की समस्याएँ’, ‘भारतेन्दु का रंग-चिन्तन’, ‘नाटककारों के सामाजिक सरोकार’, ‘रंगमंच और नारी तथा दलित’, ‘मृच्छकटिक’ और ‘यहूदी की लड़की’ की प्रस्तुतियों का अध्ययन आदि।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2004 |
Edition Year | 2022, Ed. 4th |
Pages | 235p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 2 |