निराला का कवि-विकास एकरैखिक या सपाट नहीं है, उसमें कई घुमाव हैं, उसके कई स्तर हैं। एक ही समय में भिन्न प्रकार की कविताओं के साथ कवि अपने पाठकों और आलोचकों के समक्ष चुनौती देता खड़ा हो जाता है। निराला इसीलिए महाकवि हैं क्योंकि एक तरफ़ तो उनमें क्लैसिकी परम्परा के दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी ओर एकदम अपने आसपास के परिवेश के और जनधर्मिता की कविता के।
निराला में मुक्ति की एकल याचना नहीं है, बल्कि सामूहिक चेतना है। निराला का साहित्य न साहित्यिक कट्टरता या धार्मिक कट्टरता के समक्ष घुटने टेकता है और न साम्राज्यवाद के। उनके चिन्तन में भौतिकवाद के तत्त्व भी उपस्थित हैं और वे किसी ईश्वर द्वारा संसार के सृजन का मज़ाक़ उड़ाते हैं। उनके धार्मिक दृष्टिकोण के केन्द्र में मनुष्य है, इसीलिए विज्ञान की सत्ता व उसकी सामाजिक भूमिका को तथा आधुनिक सभ्यता के मूल्यों को भी वे सहज स्वीकार करते थे। निराला की कविता मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन-व्यापार की कविता भी है जिसमें जीवन का सम्पूर्ण संगीत है।
निराला रचना को ‘युद्ध कौशल’ कहते थे और गद्य को ‘जीवन-संग्राम की भाषा’। अपने कथा-साहित्य में वे जीवन-संग्राम को अंकित करते चलते हैं। निराला ने अपनी मुक्ति-चेतना के साथ जैसे कविता को मुक्त किया वैसे ही कथा को भी। निराला की कहानियाँ भी हिन्दी की परम्परागत कहानियों के रूप और संगठन को अतिक्रमित करती हैं।
हर पीढ़ी अपने महाकवि को ‘डिस्कवर’ करती है, इसलिए हर पीढ़ी का अपना चयन होता है। सम्पादन की चौथी पीढ़ी में यह संचयन है। हमारी पीढ़ी का चयन और हमारे अपने निराला की खोज!
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2018 |
Edition Year | 2018, Ed. 1st |
Pages | 312p |
Price | ₹225.00 |
Translator | Not Selected |
Editor | Vivek Nirala |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2.5 |
Author: Suryakant Tripathi 'Nirala'
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
निराला का जन्म वसन्त पंचमी, 1896 को बंगाल के मेदिनीपुर ज़िले के महिषादल नामक देशी राज्य में हुआ। निवास उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के गढ़ा कोला गाँव में। शिक्षा हाईस्कूल तक ही हो पाई। हिन्दी, बांग्ला, अंग्रेज़ी और संस्कृत का ज्ञान उन्होंने अपने अध्यवसाय से स्वतंत्र रूप में अर्जित किया।
प्राय: 1918 से 1922 ई. तक निराला महिषादल राज्य की सेवा में रहे, उसके बाद से सम्पादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद-कार्य। 1922-23 ई. में ‘समन्वय’ (कोलकाता) का सम्पादन। 1923 ई. के अगस्त से ‘मतवाला’ मंडल में। कलकत्ता छोड़ा तो लखनऊ आए, जहाँ गंगा पुस्तकमाला कार्यालय और वहाँ से निकलनेवाली मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 ई. के मध्य तक सम्बद्ध रहे। प्राय: 1940 ई. तक लखनऊ में। 1942-43 ई. से स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहकर मृत्यु-पर्यन्त स्वतंत्र लेखन और अनुवाद-कार्य। पहली प्रकाशित
कविता : जन्मभूमि (‘प्रभा’, मासिक, कानपुर; जून 1920)। पहली प्रकाशित पुस्तक : अनामिका (1923 ई.)।
प्रमुख कृतियाँ : आराधना, गीतिका, अपरा, परिमल, गीतगुंज, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, बेला, अर्चना, नए पत्ते, अणिमा, रागविराग, सांध्य काकली, असंकलित रचनाएँ (कविता-संग्रह); बिल्लेसुर बकरिहा, अप्सरा, अलका, कुल्लीभाट, प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, भक्त ध्रुव, भक्त प्रहलाद, महाराणा प्रताप, भीष्म पितामह, चमेली, काले कारनामे, इन्दुलेखा (अपूर्ण) (उपन्यास); सुकुल की बीवी, लिली, चतुरी चमार, महाभारत, सम्पूर्ण कहानियाँ (कहानी-संग्रह); प्रबन्ध प्रतिमा, प्रबन्ध पद्म, चयन, चाबुक, संग्रह (निबन्ध-संग्रह); दो शरण, निराला संचयन, निराला रचनावली (सम्पूर्ण साहित्य)।
निधन : 15 अक्टूबर, 1961
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