‘मता-ए-दर्द’, यानी पीड़ा की पूँजी, जो उसके खाते में जमा होना शुरू हुई तो फिर बढ़ती ही चली गई। ख़ुशी के कुछ पल जो तय थे, वे ज़िन्दगी की शुरुआत में ही ख़र्च हो गए, जब उसने पहले प्यार का पहला सपना देखा था। जल्दी ही वह सपना टूटा और नासूर बनकर रूह के क़रीब बैठ गया। फिर प्यार उसके लिए प्यार न रहा, या तो उस नासूर को ढकने के लिए मरहम बना या वक़्तन-ब-वक़्तन उससे फूटनेवाली ठंडी आग की पलट, जिसका मक़सद मर्दों को अगर झुलसा देना नहीं तो सुलगाकर छोड़ देना ज़रूरी था। फिर भी यह उसकी जीत हरगिज़ न थी, दिल के हाथों वह बार-बार मजबूर हुई, अपने ऊपर से क़ाबू खो बैठी, और फिर पीड़ा की अपनी पूँजी समेटने में जुट गई। जहाँ यह उपन्यास ख़त्म होता है, वहाँ भी वह एक दोराहे पर ही खड़ी है।

पाकिस्तान की पृष्ठभूमि में लिखा गया यह उपन्यास स्त्री को लेकर लिखी जानेवाली उन फ़ार्मूलाबद्ध कथाओं में से नहीं है जिसमें लेखक अपनी वैचारिक मान्यताओं को अपने पात्रों के ऊपर थोप देते हैं। यहाँ एक स्त्री है जो अपनी स्वाभाविक गति में बनती हुई अपनी ऊँचाई की तरफ़ बढ़ रही है। वह समझौते करती है, प्रतिकार करती है, हताश होती है, लेकिन अपनी ज़िन्दगी में जो ख़ूबसूरत है, महसूस करने लायक़ है, उसके प्रति आँखें बन्द नहीं करती।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2001
Edition Year 2001, Ed. 1st
Pages 224p
Translator Surjeet
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Razia Fasih Ahamad

Author: Razia Fasih Ahamad

रज़िया फ़सीह अहमद

जन्म : 1 सितम्बर, 1934; मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)।

शिक्षा : एम.ए. (उर्दू), कराची विश्वविद्यालय।

प्रमुख कृतियाँ : उपन्‍यास—‘आबला-पा’, ‘इन्‍तज़ारे-मौसमे-गुल’, ‘इक जहाँ और भी है’, ‘मता-ए-दर्द’, ‘आज़ारे-इश्क़’, ‘सदियों की ज़ंजीर’, ‘सारे ख़्वाब हमारे’; कहानी-संग्रह—‘दो पाटन के बीच’, ‘बे-सम्त मुसाफ़िर’, ‘बारिश का आख़िरी क़तरा’, ‘नक़ाबपोश’, ‘तपती छाँव’, ‘काली बर्फ़’, ‘सच बोलने का वक़्त’ (हास्य-व्यंग्य संकलन); यात्रा-वृत्तान्त—‘दो थे मुसाफ़िर’, ‘आग और पानी’।

यात्रा : इंग्लैंड, बेल्जियम, जर्मनी, इटली, स्विट्जरलैंड, डेनमार्क, यूनान, सऊदी अरब; और अब गत कुछ वर्षों से अमेरिका में रह रही हैं।

सम्‍मान : पाकिस्तान के सर्वोच्च ‘आदम जी अवार्ड’ से सम्‍मानित।

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