Maseeha Aur Anya Ekanki

Author: Sagar Sarhadi
Editor: Ramesh Talwar
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Maseeha Aur Anya Ekanki
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ज़िन्दगी के कुछ आधारभूत मूल्य होते हैं जिन पर इंसानियत की आख़िरी उम्मीद टिकी होती है। वे हर दौर, हर मुश्किल में साधनों और सुखों से वंचित, हारे हुए लोगों का भरोसा बनते हैं, उन्हें दिलासा और हौसला देते हैं। ग़लत और सही का फ़र्क़, रिश्ते-नाते-दोस्ती, हमदर्दी, यक़ीन, एक-दूसरे की मदद करने का जज़्बा और आख़िरी साँस तक लड़ने को कटिबद्ध जिजीविषा, ये मनुष्य की आन्तरिक दुनिया के कुछ ऐसे पाए हैं जो हमारे लालच और हैवानियत के घुन से जर्जर हो चुके संसार को हर हाल में थामे रहते हैं।

सागर सरहदी के इन एकांकी नाटकों की भीतरी तहों में यही क़द्रें बहती हैं और ज़िन्दगी की तमाम विपरीत परिस्थितियों में कुछ ज़्यादा रोशन होकर हमें अपनी मौजूदगी का अहसास कराती हैं। समाज के वास्तविक हालात को सागर साहब बिना किसी लाग-लपेट के देखते और अंकित करते हैं। ग़रीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी, अपने मन का काम न कर पाने की पीड़ा, पछतावा, अकेलापन, सब कुछ को लेकर गहरा व्यर्थता-बोध—यानी डरावने वक़्तों की कोई भी शक्ल उनकी निगाह से नहीं छूटती। वे पूरी शिद्दत और सचाई से उनके ख़ाके खींचते हैं, और उतनी ही शिद्दत से उनके लाचार, समाज के हाशिये पर पहुँच चुके, परेशानहाल किरदार उन चीज़ों से लोहा लेते हैं, उन्हें सीधे अपनी रूह पर झेलते हैं।

'एक शाम और गुज़र गई' के हताश, तंगहाल लेकिन ज़िन्दादिल, सपनों को सच की तरह जीने वाले अदाकार-कलाकार हों, 'एहसास की चुभन' में अधूरे प्यार की विडम्बना हो, महानगरों में घर की समस्या पर फ़लसफ़ियों की तरह बतियाता 'एक बँगला बने न्यारा' हो या अभाव, लाचारी और इनसे पैदा होने वाली चारित्रिक कमज़ोरी को बयान करनेवाला 'दायरा', सागर सरहदी हर एकांकी में सामाजिक-आर्थिक विडम्बनाओं को उनके क्रूरतम रूप में पकड़ते हैं।

इस संग्रह में शामिल सभी एकांकी न सिर्फ़ कंटेंट और शिल्प के लिहाज़ से, बल्कि मंच-तकनीक के लिहाज़ से भी जितने पठनीय हैं, उतना ही सहज इनको मंच पर उतारना भी है। कम पात्रों के साथ, चुस्त संवादों से जटिल और दिलचस्प जीवन-दृश्यों को साकार करने में सक्षम ये छोटे-छोटे नाटक आज़ादी बाद के कुछ दशकों के समाज-मनोविज्ञान का पता भी देते हैं, रूमान और बदलाव की कामना जिसका अभिन्न हिस्सा थे।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed. 1st
Pages 184p
Translator Not Selected
Editor Ramesh Talwar
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Sagar Sarhadi

Author: Sagar Sarhadi

सागर सरहदी

सागर सरहदी का जन्म 11 मई, 1933 को अविभाजित हिन्दुस्तान के पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्त के ज़िला हज़ारा के बफ़ा गाँव में हुआ था।

उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा दिल्ली में हासिल की थी और मुम्बई के खालसा कॉलेज से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक किया था।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—राजदरबार, भूखे भजन न होई गोपाला, तनहाई, दूसरा आदमी, भगत सिंह की वापसी, इंटरनेशनल क्लब (नाटक); गुरु और बीस एकांकी (एकांकी-संग्रह); आवाज़ों का म्यूज़ियम, जीव जनावर, सागर यारा (कहानी-संग्रह)।

उन्होंने ‘कभी-कभी’, ‘सिलसिला’, ‘दीवाना’, ‘नूरी’, ‘अनुभव’, ‘ज़िन्दगी’, ‘चाँदनी’, ‘फ़ासले’, ‘रंग’, ‘कहो ना...प्यार है’ आदि फ़िल्मों का लेखन किया। ‘तेरे शहर में‘, ‘बाज़ार’, ‘चौसर’ जैसी बहुप्रशंसित फ़िल्मों के साथ-साथ कई धारावाहिकों, टेलीफ़िल्मों का निर्देशन भी किया। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे।

21 मार्च, 2021 को मुम्बई में उनका निधन हो गया।

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