प्रसिद्ध फ़िल्मकार और उर्दू के मशहूर लेखक सागर सरहदी का इन कहानियों की दुनिया जिन किरदारों से बनी है, उनमें फ़िल्मी परिवेश के किरदार तो हैं, पर पूरे संकलन में वे मामूली जगह घेरते हैं। बाक़ी में हैं मुम्बई शहर के तलछट, निम्नवर्गीय, निम्न-मध्यवर्गीय, शिक्षक, वकील और पंजाब के ग्रामीण।

इन कहानियों में एकाकीपन, यथास्थिति के ख़िलाफ़ खीज और ग़ुस्सा है। जहाँ वे अपने किरदारों को सहानुभूति देते हैं, वहीं उनके दोमुँहेपन, निष्क्रियता और सहनशीलता को अपने तंज़ का निशाना बनाते हैं। कई कहानियों में ‘मैं’ अपनी कहानी कहता है। लेकिन यह ‘मैं’ अपने को छिपाता या ढकता नहीं, बल्कि अनावृत करता है। ख़ुद पर बेरहमी से तंज़ करता है। जहाँ यह ‘मैं’ परोक्ष है, वहाँ भी उसकी उपस्थिति प्रभावशाली है।

सागर सरहदी गद्य की भाषा में कविता करने से बाज आते हैं। वे कहानियों में बिम्ब कविता के अन्दाज़ में नहीं लाते, बल्कि वे ज़िन्दगी के क़तरों से बिम्ब का काम लेते हैं। उनके पास कहानियाँ कहने का फ़लसफ़ाई अन्दाज़ है जो आज की कहानियों में कम दीखता है। लेकिन यह अन्दाज़ आसमानी फ़लसफ़े की तरह हवा में नहीं इतराता, बल्कि वे फ़िजिक्स से शुरू होकर मेटाफ़िजिक्स की तरफ़ बढ़ते हैं। पहले वे अपने घने पर्यवेक्षण से हमें क़ायल करते हैं, फिर उस विवरण को फ़लसफ़े की ऊँचाई पर ले जाते हैं। ‘जीव जनावर’ में अमानवीयता के विरुद्ध सघन चीख़ है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2002
Edition Year 2002, Ed. 1st
Pages 144p
Translator Abdul Mughani
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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You're reviewing:Jeev Janawar
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Sagar Sarhadi

Author: Sagar Sarhadi

सागर सरहदी

सागर सरहदी का जन्म 11 मई, 1933 को अविभाजित हिन्दुस्तान के पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्त के ज़िला हज़ारा के बफ़ा गाँव में हुआ था।

उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा दिल्ली में हासिल की थी और मुम्बई के खालसा कॉलेज से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक किया था।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—राजदरबार, भूखे भजन न होई गोपाला, तनहाई, दूसरा आदमी, भगत सिंह की वापसी, इंटरनेशनल क्लब (नाटक); गुरु और बीस एकांकी (एकांकी-संग्रह); आवाज़ों का म्यूज़ियम, जीव जनावर, सागर यारा (कहानी-संग्रह)।

उन्होंने ‘कभी-कभी’, ‘सिलसिला’, ‘दीवाना’, ‘नूरी’, ‘अनुभव’, ‘ज़िन्दगी’, ‘चाँदनी’, ‘फ़ासले’, ‘रंग’, ‘कहो ना...प्यार है’ आदि फ़िल्मों का लेखन किया। ‘तेरे शहर में‘, ‘बाज़ार’, ‘चौसर’ जैसी बहुप्रशंसित फ़िल्मों के साथ-साथ कई धारावाहिकों, टेलीफ़िल्मों का निर्देशन भी किया। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे।

21 मार्च, 2021 को मुम्बई में उनका निधन हो गया।

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