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Maryada Purushottam Bhagwan Ram : Jivan Aur Darshan-Paper Back

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9788180315060
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श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम तो हैं ही, पूर्ण ब्रह्म के अवतार भी हैं। महामानव और आदर्श मानव के रूप में वह सद्प्रेरणा के अजस्र स्रोत हैं। पर श्रीराम के अवतार स्वरूप को, मोक्ष को जीवन का परम पुरुषार्थ माननेवाला आस्तिक बुद्धिसम्पन्न ईश्वरवादी ही ठीक-ठीक जानता-समझता है। श्रीराम भारतीय धर्म-संस्कृति के अनिवार्य और अपरिहार्य अंग हैं! इसीलिए ईश्वर के विभिन्न नामों में साधना की दृष्टि से रामनाम का महत्त्व सर्वोपरि है।

आज के पंकिल कुहासे को नष्ट करने के लिए श्रीराम जैसे चन्दन चर्चित चरित्र में अवगाहन की महती आवश्यकता मानवता को है। वह श्रीराम, जो समस्त भारतीय साधना और ज्ञान-परम्परा के वागद्वार हैं, जिनका दृढ़चरित्र लोक-मर्यादा के कठोर अंकुश से अनुशासित है और जो जन-जन के मन को ‘रस विशेष’ से आप्लावित कर सकता है।

इस पुस्तक के लेखक डॉ. जयराम मिश्र राम-साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान ही नहीं, राम-स्वरूप के ज्ञाता और उसमें रमे हुए सन्त हैं। हमें विश्वास है कि यह ग्रन्थ वाल्मीकि और तुलसी की रामकथा-परम्परा की एक कड़ी बनेगा।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2010
Edition Year 2014, Ed. 2nd
Pages 318p
Price ₹150.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21 X 13.6 X 1.4
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Jairam Mishra

Author: Jairam Mishra

जयराम मिश्र

डॉ. जयराम मिश्र का जन्म 1915 में मुकुन्दपुर, ज़िला—इलाहाबाद में हुआ था।

शिक्षा : एम.ए., एम.एड., पीएच.डी., उपाधियाँ प्राप्त करने के उपरान्त हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी के साथ-साथ बांग्ला और पंजाबी भाषा-साहित्य का गहन अध्ययन किया तथा अनेक ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया।

युवावस्था में स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहे। सन् 1942 के आन्दोलन में भाग लेने पर राजद्रोह का मुक़दमा चला और छह वर्षों का कारावास भोगा। जेल में रहकर आध्यात्मिक ग्रन्थों—गीता, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र आदि का गहन चिन्तन-मनन किया, फलत: दिव्य आध्यात्मिक अनुभूतियाँ प्राप्त कीं। इलाहाबाद डिग्री कॉलेज में अध्यापन करते हुए अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया।

'श्री गुरुग्रन्थ-दर्शन' तथा 'नानक वाणी' कृतियों ने हिन्दी तथा पंजाबी में स्थायी प्रतिष्ठा प्रदान की। जीवनी-ग्रन्थों जैसे—‘गुरु नानक’, ‘स्वामी रामतीर्थ’, ‘आदि गुरु शंकराचार्य’, ‘मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम’, ‘लीलापुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण’, ‘शक्तिपुंज हनुमान’ ने अपनी कथात्मक ललित शैली, सहज भाषा-प्रवाह तथा स्वयं एक सन्त की लेखनी से प्रणीत होने के कारण अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की।

नैतिक ब्रह्मचारी डॉ. मिश्र मूलत: आत्मस्वरूप में स्थित उच्चकोटि के सन्त और धार्मिक विभूति थे।

निधन : सन् 1987

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