कहते हैं, अगर व्यक्ति का उद्देश्य सिर्फ़ अपनी धन-लालसा को पूर्ण करना ही रह जाए तो फिर कोई सम्बन्ध, कोई मूल्य उसके लिए कोई मायने नहीं रखता।

बांग्ला उपन्यासकार शंकर के इस उपन्यास में भी ऐसी ही एक लिप्सा-कथा को बताया गया है। सोमनाथ जिसके दो भाई सेवा-क्षेत्र में सफलतापूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे, अपने लिए व्यवसाय का मार्ग चुनता है, और देखते-देखते वही उसका सब कुछ हो जाता है। मातृ-तुल्य कमला भाभी भी उसे उसकी व्यस्तताओं से नहीं निकाल पातीं। विवाह का उनका आग्रह भी वह कभी ठीक नहीं सुनता।

दूसरी तरफ़ सोमनाथ का मित्र है सुकुमार जो लगातार की बेकारी से मनो-चिकित्सालय में पहुँच जाता है। कणा सुकुमार की बहन है जो सोम पर विश्वास करती है, लेकिन सोम उसके भरोसे को अपनी व्यावसायिक सफलता के लिए बेच देता है। अपने घर की आर्थिक स्थिति से व्याकुल उस लड़की की पवित्रता किसी बड़े बिजनेस-ठेके की रिश्वत बन जाती है।

अपने सबसे नज़दीकी मित्र की बहन को सफलता की सीढ़ी बनाकर उसने बहुत कुछ हासिल किया। लेकिन फिर आख़िरकार उसी को अपनी पत्नी के रूप में भाभी कमला के सामने लाना पड़ा। यह उपन्यास लालच और लिप्सा की सौ जीभों वाली भूख और मनुष्य के अन्तस में बसे अनुताप की संघर्ष-कथा है, जो बताती है कि उम्मीद की एक आख़िरी किरण मनुष्य के भीतर हमेशा बची रहती है, वह चाहे कितना भी क्यों न गिर जाए। एक मार्मिक और विचारोत्तेजक उपन्यास।

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Language Hindi
Format Paper Back
Edition Year 2007
Pages 112p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Author: Shankar

शंकर

बंगला के सर्वाधिक चर्चित उपन्यासकार। ‘पथेर पांचाली’ की विश्वविश्रुत भूमि में 7 जनवरी, 1933 को जन्म। छोटी उम्र में ही बनगाँव से कलकत्ता चले आए। शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई। प्रारम्भ से ही साहित्यानुरागी। आगे चलकर वैविध्यपूर्ण जीवनानुभव की तीव्रता के चलते लेखन की ओर प्रवृत्त हुए। प्रायः प्रत्येक कृति ख्याति के नए शिखर को छूती रही है। प्रथम उपन्यास ‘ये अनजाने’ 1954 में सुप्रसिद्ध बंगला पत्र ‘देश’ में प्रकाशित हुआ था जिसका इनकी अपनी कृतियों में ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण बंगला साहित्य में विशिष्ट स्थान है। 1958 में इनकी रम्य-रचना ‘जा बोलो ताई बोलो’ तथा 1960 में कहानी-संग्रह ‘एक दुई तीन’ प्रकाशित हुए। बहुचर्चित उपन्यास ‘चौरंगी’ 1962 में प्रकाशित। ‘योग-वियोग’, ‘स्थानीय समाचार’, ‘आशा-आकांक्षा’, ‘सीमाबद्ध सोने का घरौंदा’, ‘मरुभूमि’, ‘वित्त वासना’, ‘जन अरण्य’ आदि उल्लेखनीय उपन्यास हैं। ‘पात्र-पात्री’ इनका व्यंग्योपन्यास है तथा ‘ए पार बांग्ला ओ पार बांग्ला’ यात्रा-वृत्त। ‘सीमाबद्ध’ के आधार पर ही विश्वविख्यात सिने-निर्देशक सत्यजित रे ने बहुप्रशंसित फ़िल्म ‘कंपनी लिमिटेड’ बनाई थी। सत्यजित रे ने ‘जन अरण्य’ पर भी फ़िल्म बनाई जो अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुकी है।

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