vitt vasana

Author: Shankar
Edition: 2007, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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vitt vasana

संसार में सम्पत्ति का, धन का कोई विकल्प नहीं है, मनुष्य ने सभ्य होने के क्रम में जब मुद्रा का आविष्कार किया होगा, तभी यह तय हो गया होगा कि अब कोई न किसी के बराबर होगा, और न कोई कहीं रुककर यह कह सकेगा कि अब बस, मेरी क्षुधा तृप्त हुई। अब कोई कितना भी जमा करके रख सकता था, और कितने भी और की लालसा में डूबा रह सकता था।

और यहीं उस दो बित्ता ज़मीन को हमारे पैरों के नीचे से निकल जाना था जिसे सुख कहते हैं, और जिस पर पाँव जमाकर आदमी कैसे भी झंझावात का सामना कर सकता था।

यह उपन्यास अस्तित्व के उसी आधार-सुख और धन की असीम लालसा के संघर्ष की कथा है। वनबिहारी और शकुन्तला का वह प्यार जिसने किराए के एक छोटे से कमरे में, छोटी-सी एक नौकरी के सहारे एक बड़ा सुख जिया था, बाद में बिजनेस की ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों पर ऊँची उड़ानें भरने लगा। धनाभाव के कारण अपने शिशु को गँवा चुकी शकुन्तला ने ठान लिया कि अब धन के ढेर लगाने हैं तो वनबिहारी ने भी अपना सारा कौशल अपना अलग बिजनेस बड़ा करने में लगा दिया। रास्ते अलग हो गए, और प्रेम कहीं का नहीं रह गया।

लेकिन अन्त में लक्ष्मी ने शकुन्तला की परीक्षा ली और वनबिहारी ने अपनी सम्पन्नता को कभी प्रेमिका रही शकुन्तला के लिए न्योछावर कर दिया, तो जीवन जैसे कई प्रश्न लेकर खड़ा हो गया। यही मर्म है वित्त की इस वासना का।

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2007
Edition Year 2007, Ed. 1st
Pages 160p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
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Author: Shankar

शंकर

बंगला के सर्वाधिक चर्चित उपन्यासकार। ‘पथेर पांचाली’ की विश्वविश्रुत भूमि में 7 जनवरी, 1933 को जन्म। छोटी उम्र में ही बनगाँव से कलकत्ता चले आए। शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई। प्रारम्भ से ही साहित्यानुरागी। आगे चलकर वैविध्यपूर्ण जीवनानुभव की तीव्रता के चलते लेखन की ओर प्रवृत्त हुए। प्रायः प्रत्येक कृति ख्याति के नए शिखर को छूती रही है। प्रथम उपन्यास ‘ये अनजाने’ 1954 में सुप्रसिद्ध बंगला पत्र ‘देश’ में प्रकाशित हुआ था जिसका इनकी अपनी कृतियों में ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण बंगला साहित्य में विशिष्ट स्थान है। 1958 में इनकी रम्य-रचना ‘जा बोलो ताई बोलो’ तथा 1960 में कहानी-संग्रह ‘एक दुई तीन’ प्रकाशित हुए। बहुचर्चित उपन्यास ‘चौरंगी’ 1962 में प्रकाशित। ‘योग-वियोग’, ‘स्थानीय समाचार’, ‘आशा-आकांक्षा’, ‘सीमाबद्ध सोने का घरौंदा’, ‘मरुभूमि’, ‘वित्त वासना’, ‘जन अरण्य’ आदि उल्लेखनीय उपन्यास हैं। ‘पात्र-पात्री’ इनका व्यंग्योपन्यास है तथा ‘ए पार बांग्ला ओ पार बांग्ला’ यात्रा-वृत्त। ‘सीमाबद्ध’ के आधार पर ही विश्वविख्यात सिने-निर्देशक सत्यजित रे ने बहुप्रशंसित फ़िल्म ‘कंपनी लिमिटेड’ बनाई थी। सत्यजित रे ने ‘जन अरण्य’ पर भी फ़िल्म बनाई जो अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुकी है।

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