आज का विज्ञान चिन्ताजनक सीमाओं तक विकास कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में किसी दूसरे विज्ञान ने इतने नाटकीय ढंग से विकास नहीं किया है, न ही किसी दूसरे विज्ञान ने मानव-कल्याण में इतना स्पष्ट योगदान दिया है। इसके बावजूद परमाणु भौतिकी के अलावा मात्र जीवविज्ञान ने ही ऐसी बहस छेड़ी है जिसमें आम आदमी के साथ-साथ धर्म, मानविकी और प्रशासन जैसे भिन्न क्षेत्रों के नेताओं ने भी भाग लेना ज़रूरी समझा है।
इस पुस्तक में सुपरिचित अध्यापक, वैज्ञानिक और मानवतावादी लियोन आर. कैस तथा प्रसिद्ध राजनीतिविज्ञानी जेम्स क्यू विल्सन मानव क्लोनिंग की नैतिकता, प्रजनन तकनीक और मानवीय लैंगिकता की नियति पर गम्भीर बहस करते हैं। अपराध, नशाख़ोरी, शिक्षा और अमरीकी जीवन की दूसरी समस्याओं को लेकर श्री विल्सन के मशविरे की ज़रूरत अपने-अपने समय में चार अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने भी महसूस की है। हालाँकि अपने जीवन्त लेखों में दोनों लेखक मूल रूप से मानव क्लोनिंग में अपनी अनास्था प्रकट करते हैं, किन्तु लैंगिक सम्बन्धों के माध्यम से शिशु-जन्म के साथ ही परिवार की भूमिका को लेकर उनके बीच वैचारिक मतभेद सामने आता है। प्रोफ़ेसर कैस का मानना है कि परखनली शिशु और दूसरी सहायक प्रजनन तकनीकों ने मानव-जीवन को स्वयं मनुष्यों के हाथ में रख दिया है, जिसके चलते लैंगिकता के रहस्य और मानव-जीवन के नवीनीकरण के प्रति सम्मान में कमी आई है। दूसरी तरफ़ प्रोफ़ेसर विल्सन इस बात पर ज़ोर देते हैं कि जीवन का निर्माण प्राकृतिक ढंग से होता है या अप्राकृतिक ढंग से, यह बहस बेमानी है, बशर्ते शिशु की परवरिश माता-पिता प्यार-दुलार से करें, शिशु के परिवेश में माता-पिता दोनों ही क्लोनिंग चाहनेवाले हों, वे विवाहित हों और साथ ही गर्भाधान की प्रक्रिया में शिशु को किसी प्रकार की हानि न पहुँचे।
यह पुस्तक एक आम बहस का माध्यम बनती है जो सही नीति-निर्धारण के लिए ज़रूरी है और जिनेटिक शोध और इसकी खोजों के इस्तेमाल के बारे में जानकारी देती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Renu Dutt |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2002 |
Edition Year | 2009 |
Pages | 91p |
Price | ₹150.00 |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14 X 1 |