Main Aur Tum-Hard Cover

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अस्तित्ववादी चिन्तन-सरणी में सामान्यत: सार्त्र-कामू की ही बात की जाती है और आजकल हाइडेग्गर की भी; लेकिन एक कवि-कथाकार के लिए ही नहीं समाज के एकत्व का सपना देखनेवालों के लिए भी मार्टिन बूबर का दर्शन शायद अधिक प्रासंगिक है क्योंकि वह मानवीय जीवन के लिए दो बातें अनिवार्य मानते हैं : सहभागिता और पारस्परिकता।

अस्तित्ववादी दर्शन में अकेलापन मानव-जाति की यंत्रणा का मूल स्रोत है। लेकिन बूबर जैसे आस्थावादी अस्तित्ववादी इस अकेलेपन को अनुल्लंघनीय नहीं मानते, क्योंकि सहभागिता या संवादात्मकता में उसके अकेलेपन को सम्पन्नता मिलती है। इसे बूबर ‘मैं-तुम’ की सहभागिता, पारस्परिकता या ‘कम्यूनियन’ मानते हैं। यह ‘मैं-तुम’ अन्योन्याश्रित है। सार्त्र जैसे अस्तित्ववादियों के विपरीत बूबर ‘मैं’ का ‘अन्य’ के साथ सम्बन्ध अनिवार्यतया विरोध या तनाव का नहीं मानते, बल्कि ‘तुम’ के माध्यम से ‘मैं’ को सत्य की अनुभूति सम्भव होती है, अन्यथा वह ‘तुम’ नहीं रहता, ‘वह’ हो जाता है। यह ‘तुम’ या ‘ममेतर’ व्यक्ति भी है, प्रकृति भी और परम आध्यात्मिक सत्ता भी। 'मम’ और 'ममेतर’ का सम्बन्ध एक-दूसरे में विलीन हो जाने का नहीं, बल्कि ‘मैत्री’ का सम्बन्ध है। इसलिए बूबर की आध्यात्मिकता भी समाज-निरपेक्ष नहीं रहती बल्कि इस संसार में ही परम सत्ता या ईश्वर के वास्तविकीकरण के अनुभव में निहित होती है; लौकिक में आध्यात्मिक की यह पहचान कुछ-कुछ शुद्धाद्वैत जैसी लगती है।

विश्वास है कि ‘आई एंड दाऊ’ का यह अनुवाद हिन्दी पाठकों को इस महत्त्वपूर्ण दार्शनिक के चिन्तन को समझने की ओर आकर्षित कर सकेगा।

—प्राक्कथन से

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, Ed. 1st
Pages 123p
Price ₹395.00
Translator Nandkishore Acharya
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Martin Buber

Author: Martin Buber

मार्टिन बूबर

मार्टिन बूबर का जन्म 8 फरवरी, 1878 को वियना में एक रूढ़िवादी यहूदी परिवार में हुआ था।

1902 में बूबर जिओनवादी आन्दोलन की केन्द्रीय पत्रिका ‘डी वेल्ट’ साप्ताहिक के सम्पादक बन गए, लेकिन उन्होंने बाद में ख़ुद को जिओनवाद के संगठनात्मक कार्यों से बाहर कर लिया। 1923 में बूबर ने अपना प्रसिद्ध निबन्ध ‘आई एंड दाउ’ लिखा और 1925 में हिब्रू ‘बाइबिल’ का जर्मन भाषा में अनुवाद शुरू किया। 1930 में वे फ़्रैंकफ़र्ट विश्वविद्यालय अम माइन के मानद प्रोफ़ेसर बने और 1930 में एडॉल्फ हिटलर के सत्ता में आने के तुरन्त बाद ही अपने प्रोफ़ेसर पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद बूबर ने सेन्ट्रल ऑफ़िस फ़ॉर ज्यूइश एडल्ट एजुकेशन की स्थापना की, जो तेज़ी से महत्त्वपूर्ण निकाय बन गया, क्योंकि जर्मन सरकार ने यहूदियों को सार्वजनिक शिक्षा में भाग लेने से मना कर दिया था। 1938 में बूबर ने जर्मनी छोड़ दी और यरूशलेम में बस गए। वहाँ हिब्रूर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर बनकर मानव विज्ञान और परिचयात्मक समाजशास्त्र पर व्याख्यान देने लगे।

1958 में बूबर की पत्नी पाउला की मृत्यु हो गई और 13 जून, 1965 को यरूशलेम के ताल्बिए में अपने घर पर मार्टिन बूबर का निधन हो गया।

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