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Leela Purshottam Bhagwan Srikrishna : Vyaktitva Aur Darshan-Paper Back

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9788180315084
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भगवान श्रीकृष्ण सनातन, अविनाशी, सर्वलोक स्वरूप, नित्य शासक, रणधीर एवं अविचल हैं। भीष्म पितामह की इस मान्यता के बाद द्रौपदी का यह कथन, ‘हे सच्चिदानन्द-स्वरूप श्रीकृष्ण महायोगिन विश्वात्मन्, गोविन्द, कौरवों के बीच कष्ट पाती हुई मुझ शरणागत अबला की रक्षा कीजिए।’ श्रीकृष्ण के सर्वमान्य एवं सर्वव्यापी चरित्र की एक झलक मात्र प्रस्तुत करता है। सम्पूर्ण भारतीय वाङ्‌मय में ऐसा बहुआयामी तथा लोकरंजक दूसरा चरित्र नहीं है।

प्रस्तुत पुस्तक में भगवान कृष्ण के लीलाधाम स्वरूप का विस्तृत विवेचन इस तरह प्रस्तुत किया गया है जिससे पाठक उनके लौकिक तथा दार्शनिक पक्षों को सहज ही हृदयंगम कर सकेंगे। लीलाधर भगवान् श्रीकृष्ण के क्रिया-कलापों के संक्षिप्त विवरण उनके पूरे जीवन-विस्तार से इस तरह चुने गए हैं कि उनका एक मनोहारी सर्वव्यापी और सम्पूर्ण चरित्र लोगों के सामने समुपस्थित हो सके। श्रीकृष्ण सम्बन्धी अनन्त एवं अपार कथा-सागर से कोई भी लेखक कुछ बूँदें ही चुन सकता है। शर्त व्यक्ति अथवा लेखक की अपनी धारणा का है। विश्वरूप श्रीकृष्ण में वह सब है जो समस्त प्रकृति अथवा मनुष्य के प्रज्ञान में संचित है। ज्ञेय अथवा अज्ञेय स्वरूप के सम्पूर्ण व्याख्यान की क्षमता बेचारे मनुष्य में कहाँ है। वह अपनी जिज्ञासा के अनुसार उस विश्वव्यापी चरित्र का एक नन्हा आयाम ही देख पाया है।

पं. जयराम मिश्र ने एक विनम्र जिज्ञासु की तरह कृष्ण के सच्चिदानन्द, विश्वात्मन् स्वरूप को इस पुस्तक में प्रस्तुत कर हिन्दी पाठकों की महती सेवा की है तथा भारतीय संस्कृति और संज्ञान को सर्व सुलभ बनाया है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2010
Edition Year 2013, Ed. 2nd
Pages 369p
Price ₹175.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21 X 14 X 1.5
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Jairam Mishra

Author: Jairam Mishra

जयराम मिश्र

डॉ. जयराम मिश्र का जन्म 1915 में मुकुन्दपुर, ज़िला—इलाहाबाद में हुआ था।

शिक्षा : एम.ए., एम.एड., पीएच.डी., उपाधियाँ प्राप्त करने के उपरान्त हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी के साथ-साथ बांग्ला और पंजाबी भाषा-साहित्य का गहन अध्ययन किया तथा अनेक ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया।

युवावस्था में स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहे। सन् 1942 के आन्दोलन में भाग लेने पर राजद्रोह का मुक़दमा चला और छह वर्षों का कारावास भोगा। जेल में रहकर आध्यात्मिक ग्रन्थों—गीता, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र आदि का गहन चिन्तन-मनन किया, फलत: दिव्य आध्यात्मिक अनुभूतियाँ प्राप्त कीं। इलाहाबाद डिग्री कॉलेज में अध्यापन करते हुए अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया।

'श्री गुरुग्रन्थ-दर्शन' तथा 'नानक वाणी' कृतियों ने हिन्दी तथा पंजाबी में स्थायी प्रतिष्ठा प्रदान की। जीवनी-ग्रन्थों जैसे—‘गुरु नानक’, ‘स्वामी रामतीर्थ’, ‘आदि गुरु शंकराचार्य’, ‘मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम’, ‘लीलापुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण’, ‘शक्तिपुंज हनुमान’ ने अपनी कथात्मक ललित शैली, सहज भाषा-प्रवाह तथा स्वयं एक सन्त की लेखनी से प्रणीत होने के कारण अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की।

नैतिक ब्रह्मचारी डॉ. मिश्र मूलत: आत्मस्वरूप में स्थित उच्चकोटि के सन्त और धार्मिक विभूति थे।

निधन : सन् 1987

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