Lahoo Mein Fanse Shabd

हिन्दी में युवा कविता के बाद नए कवियों की एक पीढ़ी आई थी, जिसने आत्मीयता और घरेलूपन से भरी कविताएँ लिखकर हिन्दी कविता की उदासी और एकरसता से भरी हुई दुनिया में नवीन स्फूर्ति का संचार किया। श्याम कश्यप उस पीढ़ी के अन्यतम सदस्य थे, जिनकी कविताएँ ‘गेरू से लिखा हुआ नाम’ में संगृहीत हुईं और इस तरह अपनी पहचान बनाई। लेकिन प्रचार-प्रसार के तंत्र को मुँह चिढ़ानेवाले श्याम ने महत्त्व काव्य-साधना को दिया, उतना अपने यशो-विस्तार को नहीं, जिसके परिणामस्वरूप उनके अपने पाठक भी उनसे किंचित् निराश होते रहे। लेकिन पहले संग्रह के बाद प्रकाशित होनेवाला उनका यह दूसरा संग्रह ‘लहू में फँसे शब्द’ इस बात का प्रमाण है कि इस बीच भले ही उनकी कविताएँ ठिकाने से उनके पाठकों तक नहीं पहुँचीं, वे कविता के साथ निरन्तर रहे हैं और कविता लगातार उनका पीछा करती रही है।
स्वभावतः श्याम की इस संग्रह की कविताओं में प्रत्यक्ष होनेवाला विकास हमें सम्मोहित करता है। श्याम सर्वप्रथम प्रकृति के कवि हैं, फिर मनुष्य के, फिर समाज के, फिर सम्पूर्ण मनुष्यता क्या, सम्पूर्ण पृथ्वी के। उनकी ऐन्द्रिय संवेदना जिन विलक्षण और उदात्त बिम्बों में अभिव्यक्त होती है, वे हमारे भीतर उस अवकाश की सृष्टि करते हैं, जो मानवीय आत्मा के पंख फैलाने के लिए आवश्यक है और जो वर्तमान युग में लगातार कम होता जा रहा है। जहाँ तक मनुष्य से लेकर सम्पूर्ण पृथ्वी तक की बात है, श्याम ने अपनी कविताओं में उसके अनेकानेक आयामों को समेटा है। इन तमाम वस्तुओं के प्रति एक गहन चिन्ता का भाव ही नहीं है इनमें, वह आस्था भी है, जो निराशा के बादलों को इन्द्रधनुषी किरणों से तार-तार कर देती है।
निस्सन्देह श्याम सटीक वर्णन और चित्रण के कवि हैं, लेकिन ‘लहू में फँसे शब्द’ की कविताएँ पढ़ते हुए आप जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाएँगे, ऐन्द्रिय संवेदना से भावों में और भावों से फिर विचारों में उतरते जाएँगे, जहाँ की दुनिया उस अमूर्तता से युक्त है, जिसके बिना कोई कला-कृति सार्थक नहीं हो सकती। कहने की आवश्यकता नहीं कि आज का यांत्रिकता और औपचारिकता से भरा हुआ दौर जहाँ हमें निरर्थकता के किनारे तक पहुँचा रहा है, श्याम की ये कविताएँ जिनमें शब्द, बिम्ब, भाव और विचार सभी विस्फोट करते हैं, हमारे सामने एक उजास से भरे हुए क्षितिज का उन्मीलन करती हैं। प्रसाद के शब्दों को ज़रा-सा बदलकर कहें, तो ‘तुमुल कोलाहल-कलह में यह हृदय की बात रे मन!’
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 2012 |
Edition Year | 2012, Ed. 1st |
Pages | 160p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |
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