Krishnavtar : Vol. 3 : Paanch Pandav

Author: K. M. Munshi
Translator: Prafulchandra Ojha
Edition: 2010, Ed. 8th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Krishnavtar : Vol. 3 : Paanch Pandav
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पौराणिक चरित्रों को आधार बनाकर अनेक श्रेष्ठतर आधुनिक उपन्यासों की रचना करनेवाले सुप्रसिद्ध गुजराती कथाकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का भारतीय कथा-साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान है। अपनी कृतियों में उन्होंने सुदूर अतीत का जो विस्तृत जीवन-फलक प्रस्तुत किया है, वह जितना विराट् है उतना ही आकर्षक, साथ ही वह वैज्ञानिकता की कसौटी पर भी खरा उतरता है।

मुंशी जी का ‘कृष्णावतार’ एक वृहत् उपन्यास है—सात खंडों में विभक्त। ‘पाँच पाण्डव’ तीसरे खंड का हिन्दी रूपान्तर है। अन्य खंडों की ही तरह अगर यह परस्पर सम्बद्ध है तो अपने आपमें एक पूरी कथा भी है। पाँचों पाण्डवों के जन्म, विकास और संघर्षों-उपलब्धियों की इस रोचक-रोमांचक गाथा में आर्यावर्त्त के महान नायक श्रीकृष्ण की विलक्षण ऐतिहासिक भूमिका बड़ी कलात्मकता से रेखांकित हुई है। पुराकालीन आर्यों की संघर्षशील गतिविधियों, नागों की अरण्य-संस्कृति और ‘राक्षस’ नाम से पुकारे जानेवाले प्रस्तरयुगीन मानवों की आदिम जीवनचर्या के जीवन्त चित्र इसमें पूरी तरह से मुखर हैं।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Edition Year 2010, Ed. 8th
Pages 390p
Translator Prafulchandra Ojha
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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K. M. Munshi

Author: K. M. Munshi

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

गुजराती के सुप्रसिद्ध कथाकार, इतिहास और संस्कृति के मर्मज्ञ तथा प्राच्य विद्या के बहुश्रुत विद्वान।

जन्म : 30 दिसम्बर, 1887, भड़ौच (गुजरात)।

शिक्षा : बी.ए., एल.एल.बी., डी.लिट्., एल.एल.डी.।

प्रारम्भ (1915) में ‘यंग इंडिया’ के संयुक्त सम्पादक, सन् 1938 से आजीवन, भारतीय विद्या भवन के अध्यक्ष और ‘भवन्स जर्नल’ के सम्पादक। सन् 1937-57 के दौरान दस वर्षों तक गुजराती साहित्य परिषद की अध्यक्षता की। सन् 1944 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष। सन् 1951 से मृत्युपर्यन्त वह संस्कृत विश्व परिषद के भी अध्यक्ष रहे। सन् 1952 से 1957 तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का पद-भार सँभाला। उसी दौरान सन् 1957 में उन्होंने भारतीय इतिहास कांग्रेस की अध्यक्षता की।

प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ : ‘लोमहर्षिणी’, ‘लोपामुद्रा’, ‘भगवान परशुराम’, ‘तपस्विनी’, ‘पृथ्वीवल्लभ’, ‘भग्नपादुका’, ‘पाटण का प्रभुत्व’, कृष्णावतार के सात खंड—‘बंसी की धुन’, ‘रुक्मिणीहरण’, ‘पाँच पांडव’, ‘महाबली भीम’, ‘सत्यभामा’, ‘महामुनि व्यास’, ‘युधिष्ठिर’ (उपन्यास); ‘वाह रे मैं वाह’ (नाटक); ‘आधे रास्ते’, ‘सीधी चढ़ान’, ‘स्वप्नसिद्धि की खोज में’ (आत्मकथा के तीन खंड)।

निधन : 8 फरवरी, 1971

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