उपन्यास को आधुनिक मूल्यबोध की विधा कहा गया है–व्यक्ति के रूप में विकसित होते हुए मनुष्य का आख्यान। गुजराती के महान लेखक क.मा. मुंशी की ‘कृष्णावतार’ शीर्षक यह उपन्यास-शृंखला भारतीय लोकमानस के आराध्य सखा श्रीकृष्ण के जीवन को मानवी रूप में स्थापित करती हुई हमें कृष्ण को एक व्यक्ति के रूप में देखने का मौका देती है। पौराणिक परम्पराओं, विभिन्न भाषाओं के साहित्यों और लोकमान्यताओं में बसी कृष्ण-छवियों को एक बहुस्तरीय लेकिन समग्र व्यक्तित्व में रूपान्तरित करने का जैसा सफल प्रयास इस उपन्यास में हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
‘महाभारत’ श्रीकृष्ण की जीवन-यात्रा का अनिवार्य लौकिक सन्दर्भ है और अपने तनाव, संघर्ष, संत्रास और विडम्बना-बोध के चलते आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है। इस महाकथा के महत्त्वपूर्ण प्रसंग नई अर्थ-व्याख्या के साथ इस शृंखला में आए हैं। पुनः-पुनः पाठ के लिए आमंत्रित करते कृष्ण का जीवन और महाभारत के पात्रों की आधुनिक पुनः प्रस्तुति के लिए इस शृंखला को पढ़ा जाना एक जरूरी बौद्धिक कार्य है।
परम पुरुष श्रीकृष्ण की जीवन-लीला पर देश की किसी भी भाषा में आधुनिक उपन्यास लिखने का शायद यह पहला प्रयास है। पौराणिक परम्पराओं, विविध भाषाओं के काव्य-ग्रन्थों और लोक-साहित्य ने श्रीकृष्ण का जो बहुविध व्यक्तित्व और रूप हमारे सामने प्रस्तुत कर रखा है, वह अनन्य है, लेकिन उसे उपन्यास की विधा में बाँध लेने का श्रेय गुजराती के प्रमुख कथाकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी को ही प्राप्त है।
बंसी की धुन श्रीकृष्ण-चरित्र के सात खंडों में सम्पूर्ण होनेवाले उपन्यास कृष्णावतार का पहला खंड है, जिसमें श्रीकृष्ण के प्रारम्भिक जीवन की कथा कही गई है। अत्यन्त सरल और सरस भाषा-शैली में लिखे गए इस उपन्यास की विशेषता यह है कि श्रीमद्भागवत की अलौकिक घटनाओं को बीसवीं शताब्दी के परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त विश्वासोत्पादक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यही कारण है कि भक्त-हृदय और वैज्ञानिक दृष्टिसम्पन्न, दोनों श्रेणियों के पाठकों में यह समान रूप से लोकप्रिय हुआ है। इसका प्रत्येक खंड अपने में सम्पूर्ण और पठनीय है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 1965 |
Edition Year | 2022, Ed 20th |
Pages | 204p |
Translator | Onkarnath Sharma |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1.5 |