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Koi To Jagah Ho-Hard Cover

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9788126724208
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अरुण देव अपने संयत स्वर और संवेदनशील वैचारिकता के नाते समकालीन हिन्दी कविता में अपनी जगह बना चुके हैं। यह संकलन उनकी काव्य-दक्षता और संवेदना के और प्रौढ़ तथा सघन होने का प्रमाण है। ये कविताएँ आशंका के बारे में हैं, उम्मीद के बारे में हैं। स्मरण-विस्मरण के बारे में, स्त्रियों के बारे में और प्रेम के बारे में हैं। स्त्रियों के बारे में अरुण देव की कविताएँ अपनी वैचारिक ऊर्जा और ईमानदार आत्मान्वेषण के कारण अलग से ध्यान खींचती हैं। उनकी कविताओं में, प्रेम आत्मान्वेषण करता दिखता है, ख़ुद के बारे में असुविधाजनक सवालों से कतराता नहीं।

अरुण देव की कविताओं में पूर्वज भी हैं, और किताबें भी, जो—‘नहीं चाहतीं कि उन्हें माना जाए अन्तिम सत्य’। ये कविताएँ उस सत्य के विभिन्न आख्यानों से गहरा संवाद करती कविताएँ हैं जो लाओत्जे और कन्फूशियस के संवाद में ‘झर रहा था/पतझर में जैसे पीले पत्ते बेआवाज’।

अरुण देव की कविताओं से गुज़र कर कहना ही होगा, ‘अब भी अगर शब्दों को सलीके से बरता जाए/उन पर विश्वास जमता है’।

—पुरुषोत्तम अग्रवाल

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 144p
Price ₹250.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Arun Dev

Author: Arun Dev

अरुण देव

अरुण देव का जन्म 16 फ़रवरी, 1972 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में हुआ। ‘क्या तो समय’, ‘कोई तो जगह हो’ तथा ‘उत्तर पैग़म्बर’ के बाद नवीनतम कविता-संग्रह ‘मृत्यु : कविताएँ’ है। पाँच सम्पादित किताबें प्रकाशित हैं। उनकी कविताओं के अनुवाद असमी, कन्नड़, तमिल, मराठी, नेपाली, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं में हुए हैं। वे 15 वर्षों से साहित्य, कला और विचार की वेब पत्रिका ‘समालोचन’ का सम्पादन कर रहे हैं। उन्हें 2013 का ‘राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान’ तथा 2022 का ‘देवेन्द्र कुमार कविता सम्मान’ मिला है।

ई-मेल : devarun72@gmail.com

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