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Kissago-Paper Back

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‘क़िस्सागो’ मारियो वार्गास ल्योसा के सबसे महत्त्वाकांक्षी उपन्यासों में से एक है। यह लातिन अमरीकी देश पेरु के एक प्रमुख आदिवासी समूह के इर्द-गिर्द घूमता है। आदिवासी जीवन-दृष्टि और हमारी आज की आधुनिक सभ्यता के बरक्स उसकी इयत्ता को एक बड़े प्रश्न के रूप में खड़ा करनेवाला यह सम्भवतः अपनी तरह का अकेला उपन्यास है। मिटने-मिटने की कगार पर खड़े इन समाजों के पृथ्वी पर रहने के अधिकार को इसमें बड़ी मार्मिक और उत्कट संवेदना के साथ प्रस्तुत किया गया है।

एक साथ कई स्तरों पर चलनेवाले इस उपन्यास में एक तरफ़ आधुनिक विकास की उत्तेजना में से फूटे तर्क-वितर्क हैं तो दूसरी तरफ़ नदी, पर्वत, सूरज, चाँद, दुष्ट आत्माओं और सहज ज्ञानियों की एक के बाद एक निकलती कथाओं का अनवरत सिलसिला है।

विषम परिस्थितियों से जूझते, बार-बार स्थानान्तरित होने को विवश, टुकड़ों-टुकड़ों में बँटे माचीग्वेंगा समाज को जोड़नेवाली, उनकी जातीय स्मृति को बार-बार जाग्रत् करनेवाली एकमात्र जीती-जागती कड़ी है ‘क़िस्सागो’ यानी ‘आब्लादोर’। यह चरित्र उपन्यास के समूचे फलक के आर-पार छाया हुआ है। इस उपन्यास का रचयिता स्वयं एक किरदार के रूप में उपन्यास के भीतर मौजूद है। वह और यूनिवर्सिटी के दिनों का उसका एक अभिन्न मित्र साउल सूयतास आब्लादोर की केन्द्रीय अवधारणा के प्रति तीव्र आकर्षण महसूस करते हैं, पर उसे ठीक-ठीक समझ नहीं पाते। वे एक दूसरे से अपने इस सबसे गहरे ‘पैशन’ को छुपाते हैं जो अन्ततोगत्वा उनके जीवन की अलग-अलग किन्तु आपस में नाभि-नाल सम्बन्ध रखनेवाली राहें निर्धारित करता है। एक उसमें अपने उपन्यास का किरदार तलाशता भटकता है तो दूसरा स्वयं वह किरदार बन जाता है। यह उपन्यास इस अर्थ में एक आत्मीय सहचर के लिए मनुष्य की अनवरत तलाश या भटकन की कथा भी
है।

उपन्यास यथार्थ और मिथकीय, समसामयिक और प्रागैतिहासिक के ध्रुवीय समीकरणों को एक साथ साधने का सार्थक उपक्रम है। आज भारत में आदिवासी समाजों की स्थिति को लेकर चलती बहस के मद्देनज़र सम्भवतः यह उपन्यास हमारे लिए विशेष प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण हो उठता है।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Shampa shah
Editor Not Selected
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed. 1st
Pages 232p
Price ₹195.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Mario Vargas Llosa

Author: Mario Vargas Llosa

मारियो वार्गास ल्योसा

पत्रकार, निबन्धकार व राजनीतिज्ञ मारियो वार्गास ल्योसा का जन्म 1936 में पेरु में हुआ था। अपने साहित्यिक लेखन से अन्तरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित करनेवाले वे लातिन अमरीका के अग्रणी और चर्चित लेखकों में से एक हैं। उनके बीस से अधिक उपन्यास, तीन कहानी-संग्रह, तीन नाटक, और दस निबन्धात्मक पुस्तकों के अलावा पत्रकारिता से जुड़ा लेखन तीन खंडों में अलग से प्रकाशित है। ‘दि टाहम ऑफ़ दि हीरो’, ‘ग्रीन हाउस’, ‘आंट ज्यूलिया एंड दि स्क्रिप्ट राइटर’, ‘द स्टोरीटेलर’ आदि उपन्यास खासे चर्चित रहे हैं। कई अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कारों से विभूषित जिनमें स्पेन का सर्वोच्च ‘निगुअल डी सर्वान्तेस प्राइज’ भी शामिल है।

आलोचक हैरोल्ड ब्लूम द्वारा ल्योसा का उपन्यास ‘दि वॉर ऑफ़ दि एंड ऑफ़ दि वर्ल्ड’ पाश्चात्य साहित्य की प्रमुख कृतियों की सूची में शामिल किया गया।

ज़बरदस्त वैविध्य, भाषायी बेबाकपन, हास्य और तल्खी का सामंजस्य आपकी विशेषता है। लेखन व पत्रकारिता के अतिरिक्त आप राजनीति में भी सक्रिय रहे हैं। 1990 में सेंटर राइट फ़्रेन्टे डेमोक्रेटिको पार्टी की ओर से पेरु के राष्ट्रपति चुनाव के लिए खड़े हुए थे।

वर्ष 2010 के ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित।

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