Facebook Pixel

Khuda Sahi Salamat Hai -Paper Back

Special Price ₹449.10 Regular Price ₹499.00
10% Off
In stock
SKU
9788126710461
- +
Share:
Codicon

अगर ‘झूठा सच’ बँटवारे का ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, तो बँटवारे के बावजूद भारत में हिन्दू-मुस्लिम जनता के सहजीवन का मार्मिक उद्घाटन ‘ख़ुदा सही सलामत है’ में सम्भव हुआ है। हजरी, अज़ीज़न, गुलबदन, शर्मा, सिद्दीकी, पंडित, पंडिताइन, गुलाबदेई, लतीफ़, हसीना, उमा, लक्ष्मीधर, ख़्वाजा और प्रेम जौनपुरी जैसे जीवन्त और गतिशील पात्र अपनी तमाम इनसानी ताक़त और कमज़ोरियों के साथ हमें अपने परिवेश का हिस्सा बना लेते हैं। शर्मा और गुल का प्रेम इन दो धाराओं के मिश्रण को पूर्णता तक पहुँचाने को है कि साम्प्रदायिकता की आड़ लेकर रंग-बिरंगे निहित स्वार्थ उनके आड़े आ जाते हैं। जैसे प्रेम क़ुर्बानी माँगता है, वैसे ही महान सामाजिक उद्देश्य भी। यह उपन्यास अन्तत: इसी सत्य को रेखांकित करता है।

साम्प्रदायिकता के अलावा यह उपन्यास नारी-प्रश्न पर भी गहराई से विचार करता है। इसके महिला पात्र भेदभाव करनेवाली पुरुष मानसिकता की सारी गन्दगी का सामना करने के बावजूद अन्त तक अविचलित रहते हैं। अपनी समस्त मानवीय दुर्बलताओं के साथ चित्रित होने के बावजूद एक क्षण को भी ऐसा नहीं लगता कि उन्हें उनके न्यायोचित मार्ग से हटाया जा सकता है। उत्तर मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की वारिस, तवायफ़ों के माध्यम से आनेवाली यह व्यक्तित्व सम्पन्नता काफ़ी मानीखेज़ है। यह हमें याद दिलाती है कि औपनिवेशिक आधुनिकता की आत्महीन राह पर चलते हुए हम अपना क्या कुछ गँवा चुके हैं।

1980 के दशक में हमारे शासकवर्ग ने साम्प्रदायिक मसलों को हवा देने का जो रवैया अपनाया था, वह ज़मीनी स्तर पर कैसे दोनों सम्प्रदायों के निहित स्वार्थों को खुलकर खेलने के नए-नए मौक़े मुहैया करा रहा था, और भारत की संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता इस घिनौने खेल को बन्द करनेवाला नहीं, इसे ढकने-तोपने वाला परदा बनी हुई थी, इसकी पड़ताल भी इस उपन्यास में आद्यन्त निहित है। आज़ाद भारत में ग़ैरमुस्लिम कथाकारों के यहाँ मुस्लिम समाज की बहुश्रुत अनुपस्थिति के बीच यह उपन्यास एक सुखद और आशाजनक अपवाद की तरह हमारे सामने है। अपनी इन्हीं ख़ूबियों के कारण यह उपन्यास ‘आग का दरिया’, ‘उदास नस्लें’, ‘झूठा सच’ और ‘आधा गाँव’ की परम्परा की अगली कड़ी साबित होता है।

—कृष्णमोहन

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 1984
Edition Year 2024, Ed. 3rd
Pages 401p
Price ₹499.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
Write Your Own Review
You're reviewing:Khuda Sahi Salamat Hai -Paper Back
Your Rating
Ravindra Kaliya

Author: Ravindra Kaliya

रवीन्द्र कालिया

जन्म : 11 नवम्बर, 1938; जालन्धर, पंजाब।

शिक्षा : हिन्दी साहित्य में एम.ए.।

कुछ समय तक हिसार के डिग्री कॉलेज में प्राध्यापन।

प्रमुख कृतियाँ : ‘खुदा सही सलामत है’, ‘17 रानाडे रोड’, ‘ए.बी.सी.डी.’ (उपन्यास); ‘नौ साल छोटी पत्नी’, ‘सत्ताईस साल की उम्र तक’, ‘ग़रीबी हटाओ’, ‘चकैया नीम’, ‘ज़रा-सी रोशनी’, ‘गलीकूचे’, ‘रवीन्द्र कालिया की कहानियाँ’ (कहानी); ‘कॉमरेड मोनालिज़ा’, ‘स्मृतियों की जन्मपत्री’, ‘मेरे हमक़लम’, ‘सृजन के सहयात्री’, ‘ग़ालिब छुटी शराब’ (संस्मरण); ‘नींद क्यों रात-भर नहीं आती’, ‘तेरा क्या होगा कालिया’, ‘राग मिलावट मालकौंस’ (व्यंग्य)।

सम्पादन : भारत सरकार द्वारा प्रकाशित ‘भाषा’ का सह-सम्पादन। ‘धर्मयुग’ में वरिष्ठ उप-सम्पादक। ‘मेरी प्रिय सम्पादित कहानियाँ’, ‘मोहन राकेश की श्रेष्ठ कहानियाँ’ सहित लगभग पचास पुस्तकों का सम्पादन। ‘वर्तमान साहित्य’ के कहानी महाविशेषांक, ‘साप्ताहिक गंगा यमुना’, ‘वागर्थ’ और ‘नया ज्ञानोदय’ का सम्पादन।

सम्मान व पुरस्कार : ‘शिरोमणि साहित्य सम्मान’ (पंजाब शासन), ‘राममनोहर लोहिया सम्मान’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘प्रेमचन्द सम्मान’ (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान); ‘पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी पुरस्कार’ (मध्य प्रदेश शासन) आदि।

अन्तरराष्ट्रीय साहित्यिक कार्यक्रमों के सन्दर्भ में अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, सूरीनाम, दक्षिण अफ़्रीका आदि देशों की यात्राएँ।

विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में रचनाएँ शामिल। देश-विदेश की कई भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद। विभिन्न सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य रहे रवीन्द्र कालिया ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ के पूर्व निदेशक भी थे।

निधन : 09 जनवरी, 2016

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top