Khel Sirf Khel Nahin Hai-Paper Back

Author: Prabhash Joshi
Special Price ₹180.00 Regular Price ₹200.00
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ISBN:9788126716364
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9788126716364

‘खेल सिर्फ़ खेल नहीं है’ पुस्तक में प्रभाष जोशी द्वारा खेल पर लिखे गए लेख संकलित हैं। इन लेखों से हिन्दी में खेल विश्लेषण का पूरा परिदृश्य ही बदल गया था।

प्रभाष जोशी ने अपनी भूमिका में लिखा है :

“इस पुस्तक में वे लेख दिए गए हैं जो मैंने खेल पर लिखे। अब जिस तरह राजनीति पर सम्पादकीय पेज पर सम्पादकीय या मुख्य लेख या जब ज़रूरी हुआ, पहले पेज पर लिखता रहा। उसी तरह खेल जैसे खेले जाते रहे—पहले पेज, आख़िरी पेज और सम्पादकीय पेज पर कवर करता रहा। ऐसा करते हुए जो बच जाता था या जिसके मानवीय पहलू के लिए ख़बर में गुंजाइश नहीं होती थी, वही कागद कारे में आया।

खेल को महज़ एक मनोरंजन या शारीरिक व्यायाम मैं नहीं मानता। खेल मनुष्य का चरित्र बनाता है लेकिन उससे भी ज़्यादा खेल में मनुष्य का चरित्र व्यक्त और प्रकट होता है। अंग्रेज़ माँ के कैनेडियन बेटे ग्रेग रूज़ेस्की ने अमेरिकी माइकल चांग से एक मैच में एक सेट जीता, एक हारा और तीसरे सेट में चार-चार गेम पर थे। रूज़ेस्की सर्व कर रहा था तीस-तीस पर। गेम जीतने के लिए दो पाइंट और चाहिए थे। किसी तरह वह ड्यूस पर आया और फिर एडवांटेज पर। एक पाइंट के बाद गेम उसका होना था। सर्व करने के पहले रूज़ेस्की ने अपने पर क्रॉस बनाया और गेंद चूमी। तभी मुझे लगा कि गेम यह हार जाएगा। रूज़ेस्की ने सर्विस की और नेट में मार दी और फिर मार के डबन फॉल्ट कर दिया। चांग को मौक़ा मिला और वह गेम और सेट दोनों ले गया। तब रूज़ेस्की की सर्विस गोले जैसे होती थी और उसका कैरियर बन रहा था। मैंने लिखा कि वह कभी कोई ग्रैंड स्लेम जीत नहीं पाएगा। जीता भी नहीं और अब तो खेलता भी नहीं। उस मैच के सबसे नाजुक और निर्णायक मौक़े पर रूज़ेस्की का अपने पर विश्वास नहीं था, इसलिए उसने क्रॉस बनाया और गेंद चूमी। सबसे कठिन घड़ी में जिसका अपने पर विश्वास नहीं होता, उससे कुछ भी जीता नहीं जाएगा।

मैं क्रिकेट, टेनिस, फुटबॉल जैसे खेल इन्हीं नाजुक और कठिन घड़ियों में खिलाड़ियों और टीमों के चरित्र समझने के लिए देखता हूँ। महज़ मन बहलाने के लिए नहीं। खेल सचमुच एक अनुशासन है जो मनुष्य को पूरा बनाता और प्रकट करता है।”

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 352p
Price ₹200.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2.5
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Prabhash Joshi

Author: Prabhash Joshi

प्रभाष जोशी

प्रभाष जोशी 15 जुलाई, 1937 को मध्य प्रदेश में सिहोर ज़िले के आष्टा गाँव में पैदा हुए। शिक्षा इन्‍दौर के महाराजा शिवाजी राव मिडिल स्कूल और हाईस्कूल में हुई। होल्कर कॉलेज, गुजराती कॉलेज और क्रिश्चियन कॉलेज में पहले गणित और विज्ञान पढ़े। देवास के सुनवानी महाकाल में ग्राम-सेवा और अध्यापन किया। पत्रकारिता को समाज परिवर्तन का माध्यम मानकर सन् 60 में ‘नई दुनिया’ में काम शुरू किया। राजेन्द्र माथुर, शरद जोशी और राहुल बारपुते के साथ काम किया। यहीं विनोबा की पहली नगर-यात्रा की रिपोर्टिंग की। 1966 में शरद जोशी के साथ भोपाल से दैनिक ‘मध्य प्रदेश’ निकाला। 1968 में दिल्ली आकर राष्ट्रीय गांधी समिति में प्रकाशन की ज़िम्मेदारी ली। 1972 में चम्बल और बुंदेलखंड के डाकुओं के समर्पण के लिए जयप्रकाश नारायण के साथ काम किया। अहिंसा के इस प्रयोग पर अनुपम मिश्र और श्रवण कुमार गर्ग के साथ पुस्तक लिखी—‘चम्बल की बन्दूकें : गांधी के चरणों में’। 1974 में ‘प्रजानीति’ (साप्ताहिक) और ‘आसपास’ निकाली जो इमरजेंसी में बन्द हो गई। जनवरी 1978 से अप्रैल 81 तक चंडीगढ़ में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ का सम्पादन किया। फिर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ (दिल्ली संस्करण) के दो साल तक सम्पादक रहे। सन् 1983 में प्रभाष जोशी के सम्पादन में ‘जनसत्ता’ का प्रकाशन हुआ।

प्रभाष जी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘मसि कागद’, ‘हिन्दू होने का धर्म’, ‘आगे अन्‍धी गली है’, ‘धन्‍न नरबदा मइया हो’, ‘जब तोप मुकाबिल हो’, ‘जीने के बहाने’, ‘खेल सिर्फ़ खेल नहीं है’, ‘लुटियन के टीले का भूगोल’, ‘21वीं सदी : पहला दशक’, ‘प्रभाष-पर्व’, ‘कहने को बहुत कुछ था’।

निधन : 5 नवम्बर, 2009 को दिल्ली में।

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