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Karavas Ke Din

Author: Sherjung
Translator: Nirmala Sherjang
Edition: 2024, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Karavas Ke Din

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शेरजंग की अंग्रेज़ी में लिखी पुस्तक ‘प्रिज़न डेज़’ और निर्मला द्वारा किए गए उसके अत्युत्तम अनुवाद ने मेरे मन को बहुत प्रभावित किया है। यह पुस्तक एक अपूर्व व्यक्तित्व के कठोर और कड़ुवे अनुभवों का संकलन है। अभी तक मुझे शेरजंग के सन् 1947 के पूर्व की युवावस्था की सामान्य जानकारी ही थी। अब यह मुझे अपनी मूर्खता लगती है कि मैंने यह जानने की कभी कोशिश ही नहीं की कि वे कौन–सी घटनाएँ व अनुभव थे, जिन्होंने उनके व्यक्तित्व को इतना व्यवस्थित और प्रभावशाली बनाया था। मुझे यह सोचकर विस्मय होता है कि यह सब झेलने और देखने के बाद भी उनके व्यक्तित्व में कैसे वह निखार और सम्पन्नता आई जिसे सन् 1947 में मैंने देखा और अनुभव किया।

पुस्तक को अंग्रेज़ी में पढ़ने के पश्चात् मैं सोचने लगा था कि क्या शेरजंग अपनी पुस्तक में जो कहना चाहते थे, उसका अनुवादक उसे ठीक–ठीक पकड़ पाएगा। क्या वह उनके विचारों और भावों को सही तरह से व्यक्त कर पाएगा? तब मैंने निर्मला के अनुवाद को पढ़ा और देखा कि उन्होंने यथावत् वही लिखा है जो शेरजंग स्वयं कहना चाहते थे।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Nirmala Sherjang
Editor Not Selected
Publication Year 2000
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 168p
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Author: Sherjung

शेरजंग

जन्म : 27 नवम्बर, 1904।

शिक्षा : अधिकतर स्वशिक्षण। अंग्रेज़ी, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, बांग्ला और जर्मन भाषाओं के ज्ञाता।

जीवन की मुख्य घटनाएँ : आरम्भ से बहिर्मुखी और घुमक्कड़ प्रवृत्ति के धनी शेरजंग एक ज़मींदार परिवार में पैदा होने के बावजूद युवावस्था में ही ज़मींदारी के ख़िलाफ़ हो गए थे। किशोरावस्था से ही वे स्वतंत्रता-आन्दोलन में शरीक हो गए जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई जो बाद में चलकर आजीवन कारावास में बदल गई। मई, 1938 में रिहाई और उसी वर्ष शादी। 1940 में पुनः गिरफ़्तार। 1944 में रिहाई और देश को स्वतंत्रता मिलने तक दिल्ली की सिविल लाइंस में नज़रबन्द।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद 1947-48 में शरणार्थी शिविरों का आयोजन। कश्मीर मिलीशिया का संगठन किया और कर्नल की मानद उपाधि से सम्मानित हुए। बंगाल में दंगों के दौरान साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए कार्य किया। गोवा मुक्ति आन्दोलन में संलग्न रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘लोरजा’ (कविता-संग्रह); ‘लाइफ़ एंड टीचिंग ऑफ़ कार्ल मार्क्स’, ‘हिस्ट्री ऑफ़ कम्युनिस्ट रशिया’, ‘ट्रिस्ट विथ टाइगर’, ‘रैंबलिंग इन टाइगरलैंड’, ‘गनलोर’, ‘प्रिज़न डेज़’ और उर्दू में एक उपन्यास। ग़ालिब और हाफ़िज़ की ग़ज़लों के हिन्दी रूपान्तरण, ‘दस स्पेक जरथुष्ट्र’। हिन्दी में : ‘कारावास के दिन’।

निधन : 15 दिसम्बर, 1996।

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