Main Ghumakkar Vanon Ka

Author: Sherjung
Translator: Nirmala Sherjang
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Main Ghumakkar Vanon Ka

शिकार की कहानियाँ वनप्राणियों के जीवन को ही नहीं, बल्कि वनों के परिवेश और उनकी भिन्न-भिन्न स्थितियों को भी प्रदर्शित करती हैं। मनुष्य और जानवर, समय और स्थान तथा अन्य सब घटनाएँ जो शिकारी को वन-जीवन के निकट ले जाती हैं और किसी भी शिकार कथा का अभिन्न अंग हैं। जानवर का पीछा करने का अपना ही आनन्द है जिसके विचार मात्र से शिकारी की आँखों के सामने जंगल के अत्यन्त सुन्दर दृश्य नाचने लगते हैं, जैसे घने वृक्षों के नीचे धरती पर पड़ी उनकी गहरी और ठंडी छाया, प्रभात के शान्तिमय वातावरण में तूफ़ानी सागर की मतवाली लहरों की भाँति चारों ओर गूँजती शेरों की ऊँची एवं गहरी गर्जनाएँ हाथियों की तुरही-की-सी आवाज़ें, शोरगुल मचाते हुए जंगली साँड, मस्त चाल से चलता हुआ भालू, चोरों की तरह बिना ध्वनि किए छिप-छिपकर चलता हुआ बघेरा, द्रुत गति से भागते हुए साम्बर, शान से गर्दन उठाकर चलते हुए चीतल, एक-दूसरे के पीछे से अस्पष्ट दिखाई देती हुई पहाड़ियों के ऊपर इधर-उधर बिखरे हुए घास के मैदान और उन पहाड़ियों के पीछे बर्फ़ से ढके पहाड़, जिनमें यह सब कुछ मानो खो-सा जाता है।

शिकार की इन कहानियों में लेखक ने अपने अनुभवों का यथासम्भव सही-सही वर्णन करने का प्रयास किया है। साथ ही अपने साथियों और जंगल में घटी घटनाओं का उल्लेख करते समय, उन्होंने उनसे प्राप्त सुख व दु:ख, प्यार और सहानुभूति के अनुभवों को भी अपने विवरणों का हिस्सा बनाया है।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2003
Edition Year 2021, Ed. 3rd
Pages 139p
Translator Nirmala Sherjang
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 1.5
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Author: Sherjung

शेरजंग

जन्म : 27 नवम्बर, 1904।

शिक्षा : अधिकतर स्वशिक्षण। अंग्रेज़ी, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, बांग्ला और जर्मन भाषाओं के ज्ञाता।

जीवन की मुख्य घटनाएँ : आरम्भ से बहिर्मुखी और घुमक्कड़ प्रवृत्ति के धनी शेरजंग एक ज़मींदार परिवार में पैदा होने के बावजूद युवावस्था में ही ज़मींदारी के ख़िलाफ़ हो गए थे। किशोरावस्था से ही वे स्वतंत्रता-आन्दोलन में शरीक हो गए जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई जो बाद में चलकर आजीवन कारावास में बदल गई। मई, 1938 में रिहाई और उसी वर्ष शादी। 1940 में पुनः गिरफ़्तार। 1944 में रिहाई और देश को स्वतंत्रता मिलने तक दिल्ली की सिविल लाइंस में नज़रबन्द।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद 1947-48 में शरणार्थी शिविरों का आयोजन। कश्मीर मिलीशिया का संगठन किया और कर्नल की मानद उपाधि से सम्मानित हुए। बंगाल में दंगों के दौरान साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए कार्य किया। गोवा मुक्ति आन्दोलन में संलग्न रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘लोरजा’ (कविता-संग्रह); ‘लाइफ़ एंड टीचिंग ऑफ़ कार्ल मार्क्स’, ‘हिस्ट्री ऑफ़ कम्युनिस्ट रशिया’, ‘ट्रिस्ट विथ टाइगर’, ‘रैंबलिंग इन टाइगरलैंड’, ‘गनलोर’, ‘प्रिज़न डेज़’ और उर्दू में एक उपन्यास। ग़ालिब और हाफ़िज़ की ग़ज़लों के हिन्दी रूपान्तरण, ‘दस स्पेक जरथुष्ट्र’। हिन्दी में : ‘कारावास के दिन’।

निधन : 15 दिसम्बर, 1996।

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