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Kagaj Ki Nav-Hard Cover

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9788126707416
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उर्दू और हिन्दी में समान रूप से समादृत कथाकार कृश्न चन्दर का उपन्यास ‘काग़ज़ की नाव’ उनकी सशक्त लेखनी का मुखर साक्षी है। एक दस रुपए के नोट की आत्मकथा के माध्यम से उन्होंने इस उपन्यास में समाज के विभिन्न पक्षों के विभिन्न अंगों का चित्र बड़ी सरसता एवं स्पष्टता से खींचा है। आज की जीवन-प्रणाली में नोट इतना प्रधान हो गया है कि उसके आगे सभी अन्य वस्तुएँ धुँधली नज़र आती हैं। किसी की ख़ुशी का वादा एक नोट है, किसी की मुहब्बत का धोखा नोट है, किसी की मजबूर मेहनत का एक पल नोट है, तो किसी की प्रेमिका की मुस्कान भी एक नोट ही है। सच तो यह है कि संसार का हर व्यक्ति अपने जीवन के प्रति क्षण को नोट—यानी काग़ज़ की नाव में खेये चला जा रहा है। शायद यह नोट काग़ज़ का एक पुर्जा नहीं, इस युग की सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु है।

निस्सन्देह, आज के युग-यथार्थ की अगर कोई शक्ल है तो यही काग़ज़ की नाव। कृश्न चन्दर की प्रवाहमयी भाषा-शैली ने इसे जिस तेज़ी से घटनाओं की उत्ताल तरंगों पर तैराया है, उसका रोमांच बहुत गहरे तक पाठकीय भाव-संवेदन का हिस्सा बन जाता है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 1966
Edition Year 2024, Ed. 8th
Pages 151p
Price ₹495.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2
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Krishna Chander

Author: Krishna Chander

कृश्न चंदर

जन्म : 13 नवम्बर, सन् 1914
उर्दू कथा-साहित्य में अपनी अनूठी रचनाशीलता के लिए बहुचर्चित उपन्यासकार। प्रगतिशील और यथार्थवादी नज़रिए से लिखे जानेवाले साहित्य के प्रमुख पक्षधरों में से एक।
40 से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित। फ़िल्म-कथा-लेखन और फ़िल्म-निर्देशन भी किया। भारत की प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद। साथ ही अंग्रेज़ी, रूसी, पोलिश, जर्मन, हंगेरियन, डेनिश तथा चीनी आदि विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित।

प्रमुख उपन्यास : ‘अन्नदाता’, ‘हम वहशी हैं’, ‘एक गधे की आत्मकथा’, ‘तूफ़ान की कलियाँ, ‘जब खेत जागे’, ‘बावन पत्ते’, ‘एक वायलिन समन्दर के किनारे’, ‘काग़ज़ की नाव’, ‘मेरी यादों के किनारे’, ‘एक करोड़ की बोतल’, ‘गरजन की एक शाम’ आदि।

निधन : 8 मार्च, 1977

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