Jeevan Ke Din-Paper Back

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ये लोक में टहलती हुई कविताएँ हैं। इन्होंने शहर की मुख्यधारा से सिर्फ़ लिपि उठाई है, बाक़ी सब इनका अपना है। नागर मुख्यधारा में रहते-बहते न इन कविताओं को रचा जा सकता है, न पढ़ा जा सकता है। इन्हें लिखने के लिए धीमी हवा की तरह बहते पानी की सतह जैसा मन चाहिए होता है, जो निश्चय ही कवि के पास है। कवि ने इन कविताओं को जैसे धीरे-धीरे उड़ती चिडिय़ों के पंखों से फिसलते ही अपनी भाषा की पारदर्शी प्याली में थाम लिया है, और फिर काग़ज़ पर सहेज दिया है। इनमें दु:ख भी है, सुख भी है, अभाव भी है, प्रेम भी, बिछोह भी, जीवन भी और मृत्यु भी, और इन कविताओं को पढ़ते हुए वे सब प्रकृति के स्वभाव जितने नामालूम ढंग से, बिना कोई शोर मचाए हमारे आसपास साँस लेने लगते हैं। यही इन कविताओं की विशेषता है कि ये अपनी विषयवस्तु के साथ इस तरह एकमेक हैं कि आप इनका विश्लेषण परम्परागत समीक्षा-औज़ारों से नहीं कर सकते। ये अपने आप में सम्पूर्ण हैं; और जिस चित्र, जिस अनुभव को आप तक पहुँचाने के लिए उठती हैं, उसे बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के जस का तस आपके इर्द-गिर्द तम्‍बू की तरह तान देती हैं, और अनजाने आप अगली साँस उसकी हवा में लेते हैं।

संग्रह की एक कविता ‘गड़रिये’ जैसे इन कविताओं के मिज़ाज को व्यक्त करती है—‘वे निर्जन में रहते हैं/ इनसानों की संगत के वे उतने अभ्यस्त नहीं हैं जितने प्रकृति की संगत के/...वे झाड़ों के सामने खुलते हैं/वे झिट्टियों के लाल-पीले बेरों से बतियाते हैं/...वे आकाश में पैदल-पैदल जा रही बारिश के पीछे-पीछे/दूर तक जाते हैं अपने रेवड़ सहित...’

ये कविताएँ अपने परिवेश के समूचेपन में पैदल-पैदल चलते हुए सुच्‍चे फूलों की तरह जुटाई गई कविताएँ हैं; जिनका प्रतिरोध, जिनकी असहमति उनके होने-भर से रेखांकित होती है। वे एक वाचाल समाज को थिर, निर्निमेष दृष्टि से देखते हुए उसे उसकी व्यर्थता के प्रति सजग कर देती हैं, और उसके दम्‍भ को सन्देह से भर देती हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2020
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 176p
Price ₹199.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Prabhat

Author: Prabhat

प्रभात

जन्म : 1972, राजस्थान में करौली ज़‍िले के रायसना गाँव में।

प्रकाशन : ‘अपनों में नहीं रह पाने का गीत’ (कविता-संग्रह) ‘साहित्य अकादेमी’, नई दिल्ली से प्रकाशित। बच्चों के लिए गीत, कविता, कहानियों की पच्चीस किताबें प्रकाशित।

बज्जिका, छत्तीसगढ़ी, बैगा, अवधी, कुडुख, धावड़ी, भीली, बघेली इत्यादि लोक-भाषाओं में बच्चों के लिए लगभग चालीस किताबों का सम्पादन-पुनर्लेखन।

कहानीकार डॉ. सत्यनारायण के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित मोनोग्राफ़ ‘राजस्थान साहित्य अकादेमी’ से प्रकाशित।

सम्मान : ‘युवा कविता समय सम्मान’ (2012), ‘सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार’ (2010), ‘बिग लिटिल बुक अवार्ड’ (2019) से सम्मानित।

सम्प्रति : शिक्षा के क्षेत्र में स्वतंत्र कार्य।

 

 

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