Hindi Riti Sahitya

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Hindi Riti Sahitya

मध्यकालीन साहित्य के विश्रुत विद्वान डॉ. भगीरथ मिश्र ने इस छोटी-सी पुस्तक में हिन्दी-काव्य की एक अत्यन्त वेगवती धारा का सर्वांगीण अध्ययन प्रस्तुत किया है। इस काव्यधारा की पृष्ठभूमि के रूप में उन्होंने लोक-भाषा की परम्परा, रीति-साहित्य के विकास के कारणों और तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक परिस्थितियों पर विस्तार से विचार किया है। सामान्यतः इस काव्यधारा पर जो दोष लगाए जाते हैं, उन पर क्रमबद्ध रूप से विचार करते हुए निष्कर्ष रूप में कहा है कि ‘उस समय रीति साहित्य का बँधी-बँधाई परिपाटी पर विकास, रूढ़िवादिता नहीं वरन् अतिशय राजप्रशंसा से मुक्ति पाने और शुद्ध काव्य लिखने के उद्देश्य को पूरा करनेवाला है।’ और ‘हिन्दी-रीति साहित्य का जिन परिस्थितियों में विकास हुआ उनका पूरा प्रभाव आत्मसात् करके भी इस साहित्य की अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक देन है।’

लेखक का मानना है कि हमें ‘रीति-साहित्य’ को संकीर्णता से नहीं बल्कि साहित्यिक उदारता से देखना चाहिए जिससे केवल आम और अमरूद की उपयोगिता से प्रभावित लोगों के लिए बिहारी को फिर यह न कहना पड़े कि :

‘फूल्यो अनफूल्यो रह्यो गँवई गाँव गुलाब।’

पृष्ठभूमि के उपरान्त डॉ. मिश्र ने ‘रीति’ के तात्पर्य, रीतिशास्त्र की परम्परा और उसके आधार को स्पष्ट करते हुए अलंकार सम्प्रदाय, रस सम्प्रदाय और ध्वनि सम्प्रदाय के इतिहास और सिद्धान्त पर भी विस्तार से विचार किया है। साथ ही, इन सम्प्रदायों के विभिन्न आचार्यों और उनके योगदान का समुचित मूल्यांकन किया है।

पुस्तक के अन्त में रीति-काव्य धारा के नौ प्रमुख कवियों का काव्य-चयन है। उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन के सन्दर्भ में इस काव्य को पढ़ना पाठकों के लिए रुचिकर अनुभव होगा। इस प्रकार सिद्धान्त और व्यवहार की समवेत प्रस्तुति के रूप में यह पुस्तक हिन्दी रीति-साहित्य का सांगोपांग इतिहास ही है, जो साहित्य के विद्यार्थियों के लिए तो उपयोगी है ही, सन्दर्भ-ग्रन्थों के विस्तृत उल्लेख से विद्वानों के लिए भी समान रूप से उपयोगी हो गई है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 1999
Pages 211p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Bhagirath Mishra

Author: Bhagirath Mishra

भगीरथ मिश्र

हिन्दी के अधुनातन काव्यशास्त्री आचार्य भगीरथ मिश्र का जन्म संवत् 1971 विक्रमी पौष कृष्णा एकादशी रविवार को कानपुर ज़िले के एक छोटे से गाँव सैंथा में हुआ।

शिक्षा : लखनऊ विश्वविद्यालय से ‘हिन्दी काव्य-शास्त्र का इतिहास’ विषय पर डॉक्टरेट (पीएच.डी.)।

डॉ. मिश्र का कृतित्व अत्यन्त बहुआयामी रहा है। उन्होंने लगभग 32 स्वतंत्र ग्रन्थ लिखे हैं और हिन्दी के दर्जनों ग्रन्थों की प्राथमिक, समीक्षात्मक भूमिकाएँ भी लिखी हैं। इस दृष्टि से ‘हिन्दी काव्यशास्त्र का इतिहास’, ‘काव्यशास्त्र’, ‘पाश्चात्य काव्यशास्त्र’, ‘तुलसी रसायन’, ‘काव्यरस चिन्तन और आस्वाद’, ‘भाषा-विवेचन’, ‘हिन्दी रीति साहित्य’ आदि पुस्तकें उल्लेखनीय हैं।

डॉ. मिश्र लखनऊ विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक एवं रीडर तथा पूना विश्वविद्यालय (महाराष्ट्र) और सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) में हिन्दी विभाग के प्रोफ़ेसर तथा अध्यक्ष रहे। सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) के वे कुलपति भी रहे।

निधन : 12 नवम्बर, 1994 को सागर (म.प्र.) में।

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