साहित्य के इतिहासकार को किसी भी युग के साहित्य को रँगे चश्मे से नहीं देखना चाहिए, क्योंकि जो भी साहित्य युगान्तर तक जीवित रहता है, उसमें निश्चय ही कुछ जीवन्त तत्त्व रहते हैं, उनका विश्लेषण करना अभीष्ट होना चाहिए।
इन्हीं सब बातों का अनुभव करते हुए यह ‘हिन्दी साहित्य का परिचयात्मक इतिहास’ प्रस्तुत किया गया है।
प्रत्येक कालखंड में प्रचलित साहित्यिक धाराओं और युगों का अलग-अलग स्पष्ट परिचय दिया गया है तथा साहित्यकार और उसकी रचनाओं के तथ्यात्मक विवरण यथाशक्ति पूरे रूप से देने का प्रयत्न किया गया है।
आधुनिक काल के अन्तर्गत काव्य और गद्य साहित्य की विविध विधाओं का अलग-अलग युगानुसार परिचय दिया गया है। गद्य साहित्य के साथ अन्त में हिन्दी पत्रकारिता के विकास का भी संक्षिप्त विवरण दे दिया गया है, क्योंकि हिन्दी गद्य की विविध विधाओं के विकास और प्रचार में उसका महत्त्वपूर्ण योगदान है।
काव्य के प्रसंग में और विशेष रूप से प्राचीन और मध्ययुगीन काव्य-युगों और प्रवृत्तियों के विवरण के अन्त में प्रत्येक प्रवृत्ति की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कर दिया गया है, जिससे आगे के युग पर दृष्टिपात करने के पहले उस युग, धारा अथवा काव्य-प्रवृत्ति का एक समग्र स्वरूप मन में उतर सके और आगामी युग, धारा अथवा प्रवृत्ति के काव्य को समझने में सुविधा हो सके। इसी प्रकार प्रत्येक कालखंड और तत्सम्बन्धी युग के साहित्य का परिचय देने के पूर्व संक्षेप में उस काल अथवा युग की ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि देने का उपक्रम है, जिसके आधार पर यह समझा जा सके कि साहित्य में नए मोड़ क्यों आए और नई चेतना का प्रवर्तन किस कारण से हुआ। इन प्रश्नों को समझ लेने पर उस युग के साहित्य की विशेषताओं को हृदयंगम करने में सुविधा प्राप्त हो जाती है।
काव्य के इतिहास के प्रसंग में और विशेष रूप से प्राचीन और मध्यकालीन काव्यधाराओं के परिचय में कवि-परिचय के साथ-साथ उसकी विशिष्टताओं को स्पष्ट करने के लिए काव्य की कुछ पंक्तियाँ भी उदाहरणस्वरूप दी गई हैं। इससे जहाँ एक ओर तथ्यात्मक विवरण की नीरसता दूर हो जाती है, वहीं दूसरी ओर काव्य-युगों को समझने में भी सुविधा होती है।
इस संक्षिप्त, किन्तु पूरे हिन्दी साहित्य के विवरण का अवलोकन करने से यह बात भली-भाँति समझ में आ जाती है कि हिन्दी भाषा और उसके साहित्य में कितनी विविधता और व्यापकता है। लगभग एक हज़ार वर्ष का लम्बा उसका साहित्यिक इतिहास है और भाषा तो और भी पहले से है—लगभग पन्द्रह सौ वर्ष पहले से अवधी और ब्रज भाषा के शब्द सिद्ध साहित्य और संस्कृत ग्रन्थों में मिलने लगते हैं। इस लम्बी यात्रा में हिन्दी भाषा के पूर्वी और पश्चिमी रूपों में कितनी विविधता और कितना विस्तार आया तथा उसके साहित्य का कितना विविध और व्यापक विकास हुआ—इस बात का एक सहज अनुमान इस इतिहास के अध्ययन से लगाया जा सकता है। इसमें विवेचन कम और परिचय अधिक है, जिससे यह हिन्दी साहित्य के इतिहास के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हो सके।
प्रस्तुत कृति लगभग तीस वर्ष पहले प्रकाशित हुई थी। अतः पुस्तक के अन्तिम खंड (आधुनिक काल) को अधुनातन स्वरूप प्रदान किया जाना आवश्यक था। इसी दृष्टि से आधुनिक काल में साहित्य की विविध विधाओं में हुए विकास का संक्षिप्त इतिवृत्त इस कृति में समाविष्ट किया गया है। आशा है, सुविज्ञ पाठक इससे लाभान्वित होंगे।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Edition Year | 2010 |
Pages | 180p |
Translator | Not Selected |
Editor | Gyanendra Kumar Santosh |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1.5 |