Hindi : Aakansha aur Yatharth

हमारी सभ्यता चाहे जितनी विकसित हो जाए, इलेक्ट्रॉनिक संवाद (SMS) का स्वरूप चाहे जितना लघुतम बन जाए, परम्परा, परिवर्तन और प्रगति के लक्षणों, विचारों तथा संकल्पनाओं को व्यक्त करने का माध्यम भाषा ही रहेगी। इसलिए भाषा से जुड़े प्रश्न, यक्ष-प्रश्न की तरह हर देश और काल में ध्यान आकृष्ट करते हैं और करते रहेंगे। भाषाओं के विपुल और बहुरंगे संसार में हिन्दी की सहजता, सर्वग्राहिता और सामूहिकता वाली भावना उसे विलक्षण बनाती है और इन्हीं की बदौलत यह दूसरे भाषा-भाषियों को भी प्रीतिकर लगती है। हिन्दी के व्यापक प्रसार का यही मूल कारण है।
भूमंडलीकरण और सूचनाक्रान्ति के मौजूदा दौर में भी यह सच ग़ौर करने लायक़ है कि हिन्दी का जो भाषा-रूप पहले मात्र बोलचाल तक सीमित था और स्वाधीनता आन्दोलन के दिनों में राजनीतिक आलोड़न से जुड़कर लोक का कंठहार बना, वह अब प्रशासनिक, वाणिज्यिक, तकनीकी, मीडिया आदि प्रयोजनमूलक स्वरूप में भी निखर आया है। इस पुस्तक के निबन्ध हिन्दी की इसी बहुविध और व्यापक शक्ति तथा सामर्थ्य को लेकर जिरह करते हैं। इस जिरह में हक़ीक़त और फ़साने, अस्ल और ख़्वाब तथा बहुत कुछ कहे-बुने गए हैं। और यही है हिन्दी की आकांक्षा और हिन्दी का यथार्थ जो भूमंडलीकरण और सूचनाक्रान्ति के लाख दबावों के बावजूद जस-का-तस है, बल्कि पुनर्नवा है और निरन्तर प्रसार पा रहा है।
हिन्दी भाषा के इस अस्ल और ख़्वाब को लेकर डॉ. श्रीनारायण समीर ने इस किताब में विमर्श का जो ठाठ खड़ा किया है, वह क़ाबिले-तारीफ़ है, क़ायल करता है और हिन्दी के प्रशस्त भविष्य की प्रस्तावना रचता है।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 2012 |
Edition Year | 2012, Ed. 1st |
Pages | 184p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |
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