Anuvad Ki Prakriya Taknik Aur Samasyayen

Edition: 2024, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Anuvad Ki Prakriya Taknik Aur Samasyayen
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अनुवाद भाषिक कला है और किसी भाषा-रचना को दूसरी भाषा में पुनर्सृजित करने का कौशल भी। पुनर्सृजन के इस कला-कौशल में भाषा की शर्तों का अतिक्रमण होता है। तथापि यह अतिक्रमण अराजक क़तई नहीं होता। सृजन की अकुलाहट के बावजूद यह सदैव सुन्दर और रुचिकर ही होता है।

किन्तु अनुवाद का दूसरा यथार्थ यह भी है कि भाषाविज्ञान से सम्बद्ध होकर मशीन से सम्भव होने के कारण अनुवाद आधुनिक समय में जितना कला है, उतना ही विज्ञान भी है। अनुवाद की यही फ़ि‍तरत (फ़ि‍त्रत) है, जो उसे किंचित् मुश्किल कर्म बनाती है। इस मुश्किल से पार पाने में अनुवाद की प्रक्रिया और तकनीक सहायता करती हैं। तभी सटीक, समतुल्य और संगत अनुवाद सम्भव हो पाता है।

अनुवाद की राह में समस्याओं के कई पठार भी आते हैं, जिन्हें अनुवादकर्ता को अपने ज्ञान और सूझबूझ से तोड़ना पड़ता है। ज़ाहिर है, अनुवाद की प्रक्रिया और तकनीक अपनी समस्त शर्तों एवं सावधानियों के द्वारा उसे परिपाक तक पहुँचाती हैं। समस्याएँ इसमें बाधक नहीं वरन् ताक़त बनकर उभरती हैं। अनुवाद के पुनर्सृजन अथवा अनुसृजन अर्थात् समानान्तर सृजन होने का यही राज है। अनुवाद के इस राज को प्रस्तुत पुस्तक में डॉ. श्रीनारायण समीर ने बड़ी बारीकी और धैर्य के साथ उद्घाटित किया है। इस उद्घाटन में भाषा की रवानी और ताज़गी एक सर्वथा नए आस्वाद की अनुभूति कराती है, जिसे पढ़कर ही महसूस किया जा सकता है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2024, Ed. 3rd
Pages 228p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2.5
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Shrinarayan Sameer

Author: Shrinarayan Sameer

श्रीनारायण समीर

जन्म : 21 मई, 1959 को महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन की जन्मस्थली चम्पारण (बिहार) के एक छोटे से गाँव सागर चुरामन में।

शिक्षा : प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में। बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ़्फ़रपुर से हिन्दी में बी.ए. (ऑनर्स) तथा एम.ए. की उपाधि। बेंगलूर विश्वविद्यालय से ‘अनुवाद : सिद्धान्त और सृजन’ पर पीएच.डी.।

कोयला नगरी धनबाद में पत्रकारिता से जीवन की शुरुआत। राँची विश्वविद्यालय के पी.के. रॉय मेमोरियल पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में सात वर्षों तक अध्यापन। हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड के सेवाकाल में ओडिशा के आदिवासी-बहुल सुन्दरगढ़ ज़‍िले में हिन्दी माध्यम से वयस्क शिक्षा अभियान के लिए प्रशस्ति। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय एवं गृह मंत्रालय के कई अधीनस्थ कार्यालयों में कार्य। केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के बेंगलूर केन्द्र में ‘एक युग’ से अधिक समय तक सेवा।

बाबा नागार्जुन द्वारा संचालित साहित्य-शिविरों की कड़ी में धनबाद कथा शिविर ’85 का आयोजन। ‘कतार’ पत्रिका के प्रारम्भिक दस अंकों का सम्पादन। ‘भारत दुर्दशा’ और नागार्जुन के कविकर्म पर महत्त्वपूर्ण लेखन कई विश्वविद्यालयों के स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में सन्दर्भ-सामग्री के तौर पर अनुशंसित। प्रमुख पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित और कई पुस्तकों में संकलित। बेंगलूर, हैदराबाद, गोवा स्थित कई विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफ़ेसर के रूप में व्याख्यान।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘अनुवाद : अवधारणा एवं विमर्श’; ‘अनुवाद और उत्तर-आधुनिक अवधारणाएँ’; ‘हिन्दी : आकांक्षा और यथार्थ’; ‘अनुवाद की प्रक्रिया, तकनीक और समस्याएँ’।

प्रकाशनाधीन : ‘अनुवाद : सिद्धान्त और सृजन’, ‘साहित्य की सांस्कृतिक भूमिका’, ‘अनुवाद का नया विमर्श’।

निदेशक, केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो, भारत सरकार, नई दिल्ली से अवकाशप्राप्त। फ़‍िलहाल स्वतंत्र लेखन।

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