Anuvad aur Uttar aadhunik avdharnaye

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Anuvad aur Uttar aadhunik avdharnaye

अच्छा अनुवाद या कहें कि बेहतर अनुवाद हमेशा पाठ-भाषा के कलेवर से प्रस्थान होता है। उसका यह प्रस्थान मूल से निश्चित रूप से परिवर्तित और परिवर्द्धित होता है। उत्तर-आधुनिकता ने अनुवाद में मूल से परिवर्तन तथा परिवर्द्धन की पारम्परिक धीमी प्रक्रिया को एकदम से तेज़ कर दिया है। इससे अनुवाद के चाल-चरित्र में बदलाव आया है। विश्वग्राम के मौजूदा दौर में अनुवाद के क्षेत्र में आया बदलाव उसकी सीमा नहीं, बल्कि शक्ति और सामर्थ्य मानना चाहिए। ऐसे ही अनुवाद की अब माँग और धूम है।

प्रस्तुत पुस्तक में अनुवाद के इसी बदले रूप और रचाव पर भूमंडलीकरण, बाज़ारवाद और सूचनाक्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में विचार किया गया है। इस क्रम में अनुवाद को उसके अनुप्रयुक्त पक्षों के आसंग से भी समझने का प्रयास किया गया है। यद्यपि इस प्रयास में तर्क और विचार का आलोचनात्मक ताप पुस्तक में यत्र-तत्र-सर्वत्र है, फिर भी अनुवाद के सरोकारों को लेकर यह पुस्तक जो ललित विमर्श रचती है, वह नायाब और बेजोड़ है। इसे एक बार पढ़ना अपने समय के संघात, समाज की जद्दोजहद और सभ्यता की करवट से रूबरू होना है। साथ ही भाषा के तक़ाज़े को आत्मा की अतल गहराइयों से महसूस करना है। पुनरपि, वैश्वीकरण के दौर में भाषा, आकांक्षा और राजनीति के सरोकारों को समझना तथा पक्षधरता को बेबाक और मानवीय बनाना भी है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 140p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Shrinarayan Sameer

Author: Shrinarayan Sameer

श्रीनारायण समीर

जन्म : 21 मई, 1959 को महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन की जन्मस्थली चम्पारण (बिहार) के एक छोटे से गाँव सागर चुरामन में।

शिक्षा : प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में। बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ़्फ़रपुर से हिन्दी में बी.ए. (ऑनर्स) तथा एम.ए. की उपाधि। बेंगलूर विश्वविद्यालय से ‘अनुवाद : सिद्धान्त और सृजन’ पर पीएच.डी.।

कोयला नगरी धनबाद में पत्रकारिता से जीवन की शुरुआत। राँची विश्वविद्यालय के पी.के. रॉय मेमोरियल पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में सात वर्षों तक अध्यापन। हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड के सेवाकाल में ओडिशा के आदिवासी-बहुल सुन्दरगढ़ ज़‍िले में हिन्दी माध्यम से वयस्क शिक्षा अभियान के लिए प्रशस्ति। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय एवं गृह मंत्रालय के कई अधीनस्थ कार्यालयों में कार्य। केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के बेंगलूर केन्द्र में ‘एक युग’ से अधिक समय तक सेवा।

बाबा नागार्जुन द्वारा संचालित साहित्य-शिविरों की कड़ी में धनबाद कथा शिविर ’85 का आयोजन। ‘कतार’ पत्रिका के प्रारम्भिक दस अंकों का सम्पादन। ‘भारत दुर्दशा’ और नागार्जुन के कविकर्म पर महत्त्वपूर्ण लेखन कई विश्वविद्यालयों के स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में सन्दर्भ-सामग्री के तौर पर अनुशंसित। प्रमुख पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित और कई पुस्तकों में संकलित। बेंगलूर, हैदराबाद, गोवा स्थित कई विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफ़ेसर के रूप में व्याख्यान।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘अनुवाद : अवधारणा एवं विमर्श’; ‘अनुवाद और उत्तर-आधुनिक अवधारणाएँ’; ‘हिन्दी : आकांक्षा और यथार्थ’; ‘अनुवाद की प्रक्रिया, तकनीक और समस्याएँ’।

प्रकाशनाधीन : ‘अनुवाद : सिद्धान्त और सृजन’, ‘साहित्य की सांस्कृतिक भूमिका’, ‘अनुवाद का नया विमर्श’।

निदेशक, केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो, भारत सरकार, नई दिल्ली से अवकाशप्राप्त। फ़‍िलहाल स्वतंत्र लेखन।

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