Anuvad : Avadharna evam vimarsh

Linguistics
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Anuvad : Avadharna evam vimarsh
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नवोन्मेष तथा सृजनशीलता को अनुवाद का स्वभाव घोषित करनेवाली यह किताब अनुवाद को दो भिन्न समुदायों, राष्ट्रीयताओं और देशों को समझने एवं उनके मत-मतान्तरों को जानने का ज़रूरी औजार मानती है। फलस्वरूप यह अनुवाद को भाषा-संवाद मानने की प्रचलित मान्यता से आगे बढ़कर उसे सभ्यता-संवाद मानने का तर्क रचती है। इसमें अनुवाद को आधारभूत पहलुओं से समझने और विवेचित करने का प्रयास है। इस प्रयास में अनुवाद की अवधारणा को विखंडनवादी विमर्श के धरातल पर भी रखकर जाँचा-परखा गया है। विवेचन में इस बात की ख़ास सावधानी बरती गई है कि अत्याधुनिकता की चकाचौंध में अनुवाद का कला-कौशल धूमिल न हो जाए, बल्कि उसमें सृजन की लौ सर्वत्र जलती रहे। अक्सर अनुवाद को भाषा-कर्म कहा जाता है, मगर यह भाषा-कर्म कोई सामान्य कर्म नहीं है। मनुष्य-समाज की संवेदना, परम्परा, संघर्ष और सम्पूर्ण जीवन-राग भाषा के नियामक तत्त्व होते हैं। स्वाभाविक है कि अनुवाद के चिन्तन और सरोकार भाषा के नियामक तत्त्वों से जुड़कर गहन और व्यापक हो जाते हैं। शायद इसीलिए अनुवाद में मूलवत् होने की आकांक्षा और वास्तविकता के बीच टकराव मिलता है। किन्तु इस तरह के टकराव को यह किताब भाषा, संस्कृति और सभ्यता के विभाजक छोरों के हवाले नहीं करती, किसी क़ि‍स्म की जिरह से उसका महिमामंडन भी नहीं करती; बल्कि अनुवादकर्ता के कौशल और क़ाबिलियत का विमर्श रचती है। अकारण नहीं, यह किताब अनुवाद को सृजन मानती है—किसी भाषा-सृजन का दूसरी भाषा में सृजन—अनुरचना की शक्ल में मूल रचना की परवर्ती रचना। अनुवाद को रचना का अनश्वर उद्यम घोषित करना निस्सन्देह इस किताब का मौलिक और सर्वथा नया विमर्श माना जाएगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Editorial Review

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Shrinarayan Sameer

Author: Shrinarayan Sameer

श्रीनारायण समीर

जन्म : 21 मई, 1959 को महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन की जन्मस्थली चम्पारण (बिहार) के एक छोटे से गाँव सागर चुरामन में।

शिक्षा : प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में। बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ़्फ़रपुर से हिन्दी में बी.ए. (ऑनर्स) तथा एम.ए. की उपाधि। बेंगलूर विश्वविद्यालय से ‘अनुवाद : सिद्धान्त और सृजन’ पर पीएच.डी.।

कोयला नगरी धनबाद में पत्रकारिता से जीवन की शुरुआत। राँची विश्वविद्यालय के पी.के. रॉय मेमोरियल पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में सात वर्षों तक अध्यापन। हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड के सेवाकाल में ओडिशा के आदिवासी-बहुल सुन्दरगढ़ ज़‍िले में हिन्दी माध्यम से वयस्क शिक्षा अभियान के लिए प्रशस्ति। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय एवं गृह मंत्रालय के कई अधीनस्थ कार्यालयों में कार्य। केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के बेंगलूर केन्द्र में ‘एक युग’ से अधिक समय तक सेवा।

बाबा नागार्जुन द्वारा संचालित साहित्य-शिविरों की कड़ी में धनबाद कथा शिविर ’85 का आयोजन। ‘कतार’ पत्रिका के प्रारम्भिक दस अंकों का सम्पादन। ‘भारत दुर्दशा’ और नागार्जुन के कविकर्म पर महत्त्वपूर्ण लेखन कई विश्वविद्यालयों के स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में सन्दर्भ-सामग्री के तौर पर अनुशंसित। प्रमुख पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित और कई पुस्तकों में संकलित। बेंगलूर, हैदराबाद, गोवा स्थित कई विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफ़ेसर के रूप में व्याख्यान।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘अनुवाद : अवधारणा एवं विमर्श’; ‘अनुवाद और उत्तर-आधुनिक अवधारणाएँ’; ‘हिन्दी : आकांक्षा और यथार्थ’; ‘अनुवाद की प्रक्रिया, तकनीक और समस्याएँ’।

प्रकाशनाधीन : ‘अनुवाद : सिद्धान्त और सृजन’, ‘साहित्य की सांस्कृतिक भूमिका’, ‘अनुवाद का नया विमर्श’।

निदेशक, केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो, भारत सरकार, नई दिल्ली से अवकाशप्राप्त। फ़‍िलहाल स्वतंत्र लेखन।

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