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Hijarat Se Pahale-Hard Cover

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9788126727070
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सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि और गहरे भावनात्मक प्रवाह की धनी कथाकार वंदना राग का यह नया कहानी-संग्रह उनके कथाकार की क्षमताओं के नए क्षितिजों से परिचित कराता है। परिपक्व भाषा-संस्कार और अपने पात्रों के माध्यम से अपने समय-समाज के स्याह-सफ़ेद पर वयस्क दृष्टि डालते हुए वंदना राग अपनी कहानियों में जीवन की जिन विडम्बनाओं और छवियों को चिह्नित करती हैं, उनसे हम अपने समय के ख़ाली स्थानों को समझ और पकड़ सकते हैं।

वंदना राग के पात्र अपनी संश्लिष्टता और वैविध्य में अपने समकालीन सच्चाइयों को इतने विश्वसनीय ढंग से उजागर करते हैं कि उनकी कहानियाँ अपने समय की समीक्षा करती नज़र आती हैं। जिए हुए और जिए जा रहे अपने वक़्त का साक्ष्य उनकी भाषा में भी दिखाई देता है जो सिर्फ़ कहानी को बयान नहीं करती, उसकी अन्तर्ध्वनियों को चिह्नित भी करती जाती हैं।

इस संग्रह में शामिल दसों कहानियाँ इस तथ्य की साक्षी हैं कि हिन्दी की युवा कहानी अपने कथ्य के ज़रिए अपने वक़्त को जितनी गम्भीरता से पकड़ने की कोशिश कर रही है, वह उल्लेखनीय है, और वंदना राग ने इस परिदृश्य में अपनी सतत और रचनात्मक उपस्थिति से बार-बार भरोसा जगाया है। संग्रह में शामिल ‘विरासत’, ‘क्रिसमस कैरोल’, ‘मोनिका फिर याद आई’ और ‘हिजरत से पहले’ जैसी कहानियाँ पाठकों को लम्बे समय तक याद रहेंगी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2015
Edition Year 2016, Ed. 2nd
Pages 140p
Price ₹300.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Vandana Rag

Author: Vandana Rag

वन्दना राग

वन्दना राग मूलत: बिहार के सीवान ज़‍िले से हैं। जन्म इन्दौर मध्य प्रदेश में हुआ और पिता की स्थानान्तरण वाली नौकरी की वजह से भारत के विभिन्न शहरों में स्कूली शिक्षा पाई। 1990 में दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया। पहली कहानी ‘हंस’ में 1999 में छपी और फिर निरन्‍तर लिखने और छपने का सिलसिला चल पड़ा। तब से कहानियों की चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं—‘यूटोपिया’, ‘हिजरत से पहले’, ‘ख़यालनामा’ और ‘मैं और मेरी कहानियाँ’। इसके अलावा अनेक अनुवाद कर चुकी है जिनमें प्रख्यात इतिहासकार ई.जे. हॉब्सबाम की किताब ‘एज ऑफ़ कैपिटल’ का अनुवाद ‘पूँजी का युग’ शीर्षक से किया है। यदा-कदा अख़बारों में सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर लिखती रहती हैं। ‘बिसात पर जुगनू’ इनका पहला उपन्यास है।

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