Gorakhnath : Jeevan Aur Darshan

Author: Kanhaiya Singh
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Gorakhnath : Jeevan Aur Darshan
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महायोगी गोरखनाथ नौवीं-दसवीं शताब्दी में अवतरित हुए। उन्होंने पतंजलि के योगसूत्रों के आधार पर अपनी योग-साधना का प्रतिपादन किया तथा स्वयं उसकी साधना से सिद्धि प्राप्त की थी। बुद्ध के बाद गोरखनाथ ही भारत में सच्चे लोकनायक हुए। उनका प्रभाव राजमहल से झोपड़ियों तक पड़ा था। अछूत और अन्त्यज के लिए उन्होंने अपने पंथ का द्वार खोल दिया था। कई महत्त्वपूर्ण योगी ऐसी ही जातियों से निकले और बहुत से अन्य धर्मावलम्बी भी योगमार्ग पर अग्रसर हुए। इस प्रकार उन्होंने जाति, पन्थ और सम्प्रदाय की रूढ़ियों को तोड़कर सामाजिक समरसता का मार्ग प्रशस्त किया। साथ ही ब्रह्मचर्य, वैराग्य और साधना द्वारा योगमार्ग को प्रशस्त किया।

उनका प्रभाव, उनके समय से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक के समाज और साहित्य पर सम्पूर्ण भारत में पड़ा। उनके क्रियात्मक योग की प्रक्रिया और शब्दावली आदि का सभी भाषाओं के सन्त कवियों और सूफ़ी कवियों ने प्रयोग किया है। गोरखनाथ के योग का जादू को आज सारा विश्व स्वीकर कर रहा है। योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह योग आज के विश्व-मानव समाज के लिए महायोगी गोरखनाथ की अमूल्य देन है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2020
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 214p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 24 X 14 X 1
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Kanhaiya Singh

Author: Kanhaiya Singh

कन्हैया सिंह

प्रमुख भारतीय साहित्यकार डॉ. कन्हैया सिंह पाठ-सम्पादन एवं सूफ़ी काव्य के अधिकृत विद्वान् के रूप में हिन्दी जगत में सुपरिचित हैं। आजमगढ़ जनपद में जन्मे डॉ. कन्हैया सिंह एम.ए., एल.एल.बी., पीएच.डी., डी.लिट् आदि उपाधियों से विभूषित हैं।

विधि प्रवक्ता के रूप में आपने अपने अध्यापकीय जीवन का प्रारम्भ करते हुए हिन्दी के प्रवक्ता-रीडर अध्यक्ष, प्राचार्य, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, आदि दायित्वों का निर्वहन किया। इनकी चर्चित पुस्तकों में ‘सूफ़ी काव्य : सांस्कृतिक अनुशीलन’, ‘युगद्रष्टा मलिक मुहम्मद जायसी’, ‘सूफ़ीमत’, ‘हिन्दी सूफ़ी काव्य में हिन्दू संस्कृति’, ‘उदार इस्लाम का सूफ़ी चेहरा’, ‘पाठ-सम्पादन के सिद्धान्त’, ‘हिन्दी पाठानुसन्धान’, जायसीकृत ‘पद्मावति : मूल पाठ और टीका', ‘मध्यकालीन अवधी का विकास’, ‘राहुल सांकृत्यायन’, ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'’ आदि हैं। सृजनात्मक साहित्य के क्षेत्र में महत्त्‍पूर्ण ‘साहित्य और संस्कृति’ (निबन्ध-संग्रह), ‘वेदना के संवाद’ (ललित निबन्ध), ‘अँधेरे के अध्याय’ (संस्मरण), ‘पत्थर की मुस्कान’ (कहानी-संग्रह), ‘दक्षिणांचल दर्शन’ (यात्रा-वृत्तान्त) आदि पुस्तकें हैं। कुल चालीस से अधिक मौलिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। इनके साहित्यिक अवदान को देखते हुए इनको उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ का ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय साहित्य सम्मान’ तथा ‘साहित्य भूषण सम्मान’, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा का ‘सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार’, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का ‘साहित्य महोपाध्याय’ आदि पुरस्कारों से विभूषित किया गया है।

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