मध्यकालीन भारत के जिस दौर में गुरु गोरखनाथ का व्यक्तित्व सामने आया, वह विभिन्न सामाजिक और नैतिक चुनौतियों के सामने एक असहाय और दिग्भ्रमित दौर था। ब्राह्मणवाद और वर्ण-व्यवस्था की कठोरता अपने चरम पर थी, आध्यात्मिक क्षेत्र में समाज को भटकानेवाली रहस्यवादी शक्तियों का बोलबाला था। इस घटाटोप में गोरक्षनाथ जिन्हें हम गोरखनाथ के नाम से ज्‍़यादा जानते हैं, एक नई सामाजिक और धार्मिक समझ के साथ सामने आए।

वे हठयोगी थे। योग और कर्म दोनों में उन्होंने सामाजिक अन्याय और धार्मिक अनाचार का स्पष्ट और दृढ़ प्रतिरोध किया। वज्रयानी बौद्ध साधकों की अभिचार-प्रणाली और कापालिकों की विकृत साधनाओं पर उन्होंने अपने आचार-व्यवहार से उन्होंने निर्णायक प्रहार किए और अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्तियों से समाज को चेताने का कार्य किया। मन्दिर और मस्जिद के भेद, उच्च व निम्न वर्णों के बीच स्वीकृत अन्याय, अनाचार तथा सच्चे गुरु की आवश्यकता और आत्म की खोज को विषय बनाकर उन्होंने लगातार काव्य-रचना की।

इस पुस्तक में उनके चयनित पदों को व्याख्या सहित प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक गोरख की न्याय-प्रणाली को सम्यक् रूप में आत्मसात् कर सकें। मध्यकालीन साहित्य के अध्येताओं के लिए यह पुस्तक विशेष रूप से उपयोगी है।

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2020
Edition Year 2021, Ed. 2nd
Pages 87p
Translator Not Selected
Editor Darshan Pandey
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21 X 14 X 1
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You're reviewing:Gorakhbani
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Editorial Review

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Gorakhnath

Author: Gorakhnath

गोरखनाथ

गोरखनाथ या गोरक्षनाथ प्रख्यात नाथ योगी थे। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेक ग्रन्‍थों की रचना की। गोरखनाथ का मन्दिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित है।

गोरखनाथ के समय के बारे में भारत में अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार की बातें कही हैं। जॉर्ज वेस्टन ब्रिग्स (‘गोरखनाथ एंड कनफटा योगीज़’, कलकत्ता, 1938) ने इस सम्‍बन्‍ध में प्रचलित दन्‍तकथाओं के आधार पर कहा है कि जब तक और कोई प्रमाण नहीं मिल जाता तब तक वे गोरखनाथ के विषय में इतना ही कह सकते हैं कि गोरखनाथ ग्यारहवीं शताब्दी से पूर्व या सम्‍भवत: आरम्‍भ में, पूर्वी बंगाल में प्रादुर्भूत हुए थे।

मत्स्येन्‍द्रनाथ अथवा मछिन्‍द्रनाथ 84 महासिद्धों में से एक थे। वे गोरखनाथ के गुरु थे जिनके साथ उन्होंने हठयोग की स्थापना की। उन्हें संस्कृत में हठयोग की प्रारम्भिक रचनाओं में से एक ‘कौलज्ञाननिर्णय’ (कौल परम्‍परा से सम्‍बन्धित ज्ञान की चर्चा) का लेखक माना जाता है। वे हिन्‍दू और बौद्ध दोनों ही समुदायों में प्रतिष्ठित हैं। मछिन्‍द्रनाथ को नाथ प्रथा का संस्थापक भी माना जाता है।

गोरखनाथ के अध्येता डॉ. पीताम्‍बरदत्त बड़थ्वाल की खोज में 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है। डॉ. बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद उनमें इन 14 ग्रन्‍थों को असन्‍दिग्ध रूप से प्राचीन माना ‘सबदी’, ‘पद’, ‘शिष्यादर्शन’,’ प्राण-सांकली’, ‘नरवैबोध’, ‘आत्मबोध’, ‘अभय मात्रा जोग’, ‘पन्‍द्रहतिथि’, ‘सप्तवार’, ‘मछिन्‍द्र गोरख बोध’, ‘रोमावली’, ‘ग्यान तिलक’, ‘ग्यान चौंतीसा’ तथा ‘ पंचमात्रा’।

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