इस नाटक के लिए दिल्ली के प्रसिद्ध ‘एक्ट-वन नाट्य समूह’ और ख़ुद पीयूष मिश्रा ने इतना शोध और परिश्रम किया था कि भगतसिंह पर इतिहास की कोई पुस्तक बन जाती, लेकिन उन्हें नाटक लिखना था जिसकी अपनी संरचना होती है, सो उन्होंने नाटक लिखा जिसने हमारे मूर्तिपूजक मन के लिए भगतसिंह की एक अलग महसूस की जा सकनेवाली छवि पेश की।
सुखदेव से एक न समझ में आनेवाली मित्रता में बँधे भगतसिंह, पंडित आज़ाद के प्रति एक लाड़-भरे सम्मान से ओत-प्रोत भगतसिंह, महात्मा गांधी से नाइत्तफ़ाक़ी रखते हुए भी उनके लिए एक ख़ास नज़रिया रखनेवाले भगतसिंह, नास्तिक होते हुए भी गीता और विवेकानन्द में आस्था रखनेवाले भगतसिंह, माँ-बाप और परिवार से अपने असीम मोह को एक स्थितप्रज्ञ फ़ासले से देखनेवाले भगतसिंह, पढ़ाकू, जुझारू, ख़ूबसूरत, शान्त, हँसोड़, इंटेलेक्चुअल, युगद्रष्टा, दुस्साहसी और...प्रेमी भगतसिंह। यह नाटक हमारे उस नायक को एक जीवित-स्पन्दित रूप में हमारे सामने वापस लाता है जिसे हमने इतना रूढ़ कर दिया कि उनके विचारों के धुर दुश्मन तक आज उनकी छवि का राजनीतिक इस्तेमाल करने में कोई असुविधा महसूस नहीं करते।
यह नाटक पढ़ें, और जब खेला जाए, देखने जाएँ और अपने पढ़े के अनुभव का मिलान मंच से करें। नाटक के साथ इस जिल्द में निर्देशक एन.के. शर्मा की टिप्पणी भी है, और पीयूष मिश्रा का शफ़्फ़ाफ़ पानी जैसे गद्य में लिखा एक ख़ूबसूरत आलेख भी, और साथ में भगतसिंह की लिखी कुछ बार-बार पठनीय सामग्री भी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2018 |
Edition Year | 2024, Ed. 4th |
Pages | 128p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1 |