Fir Ugana

Poetry
Author: Parwati Tirkey
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Fir Ugana
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हिन्दी कविता की युवतम पीढ़ी में पार्वती तिर्की का स्वर एकदम अलग है। झारखंड के कुड़ुख समुदाय से आनेवाली पार्वती आदिवासी जीवन-बोध के आधारभूत तत्त्वों से अपनी कविता की काया रचती हैं जिसमें प्रकृति की बड़ी और निर्णायक भूमिका रहती है। धरती, चाँद-तारे, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु—ये सब जैसे आदिवासी जीवन में अभिन्न हैं, उसी तरह पार्वती की इन कविताओं में भी उनकी मौजूदगी दिखाई देती है।

अभिव्यक्ति की सरल भंगिमाओं में उनकी कविताएँ अनायास ही प्रकृति और मनुष्य के आपसी सम्बन्धों को देखने की हमारी दृष्टि को बदल देती हैं। ये कविताएँ बताती हैं कि सृष्टि के प्राकृतिक अनुशासन के भीतर ही मनुष्य की तमाम चेष्टाएँ अपना स्थान ग्रहण करती हैं, और उसी के अनुकूलन में मनुष्य अपना स्वाभाविक विकास कर पाता है।

पार्वती की कविताओं की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता यह है कि वे बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के प्रकृति के सान्निध्य में बनते-बढ़ते जीवन की सहज छवियों, बिम्बों, लोक के विश्वासों और मान्यताओं को कविता का हिस्सा बना देती हैं।

आदिवासी बोध के बाहर पनप रही सभ्यता के आक्रामक प्रभावों और ख़तरों को रेखांकित करना भी पार्वती नहीं भूलतीं। इस संग्रह की कई कविताएँ प्रकृति के साहचर्य और उसके बरक्स खड़े शहरी दबावों के तनाव को सफलतापूर्वक अंकित करती हैं।

‘फिर उगना’ के पन्नों से गुज़रना कविता-सुधी पाठकों के लिए निश्चय ही एक नए इलाक़े से वाक़िफ़ होने जैसा होगा।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 128p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 19.5 X 12 X 1
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Editorial Review

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Parwati Tirkey

Author: Parwati Tirkey

पार्वती तिर्की

झारखंड के गुमला शहर में 16 जनवरी 1994 को जन्मी पार्वती त‌िर्की की आरम्भिक शिक्षा गुमला के ही जवाहर नवोदय विद्यालय में हुई। इसके बाद उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा हास‌िल की और वहीं के हिन्दी विभाग से ‘कुडुख आदिवासी गीत : जीवन राग और जीवन संघर्ष’ विषय पर पी-एच.डी. की डिग्री ली।

कविता और लोकगीतों में उनकी विशेष अभिरुचि है। कहानियाँ भी लिखती हैं। एक कहानी ‘गिदनी’ ‘वागर्थ’ पत्रिका में छप चुकी है। ‘इंद्रधनुष’, ‘सदानीरा’, ‘समकालीन जनमत’, ‘हिन्दवी’, ‘प्रगतिशील हाँक’ आदि वेबपत्रिकाओं और ‘कृति बहुमत’, ‘देशज समकालीन’, ‘सदानीरा’ (एंथ्रोपोसीन अंक) आदि पत्र‌िकाओं में कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं।

‘फिर उगना’ पार्वती त‌िर्की का पहला कविता-संग्रह है।

फिलहाल राँची विश्वविद्यालय, राँची के राम लखन सिंह यादव कॉलेज, हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक हैं।

ईमेल : ptirkey333@gmail.com

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