Ek Bechain Ka Roznamcha

Author: Fernando Pessoa
Translator: Sharad Chandra
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Ek Bechain Ka Roznamcha

विधा चाहे कोई भी हो—गद्य, पद्य, नाटक, या निबन्ध—पैसोआ का प्रधान उद्देश्य हमेशा अपनी पहचान की खोज में भटकते मनुष्य की वेदना और द्वन्द्व को प्रकट करना रहता है। स्वभाव से अन्तर्मुखी पैसोआ किसी एक विचार और उसके विपरीत के बीच टकराते रहते थे। वे सभी सच्चाइयों की सापेक्षता पर भी ज़ोर देते थे। उनके सबसे पहले अनुवादक जोनाथन ग्रिफिन ने उन्हें ‘एक निष्पक्ष अन्तर्मुखी’ कहा है। वे ‘कला के लिए कला’ सिद्धान्त के समर्थक थे किन्तु साथ में इस बात में भी पूरा विश्वास करने लगे थे कि कलाकार को बिना आत्मनिर्भर हुए समकालीन विचारों को प्रकट करना चाहिए। इस तरह उनकी राय में सबसे बड़ा कलाकार वह होता है जो अपने सम्बन्धों को सबसे कम महत्त्व देता हो, अधिकतम साहित्यिक विधाओं में लिखता हो, और जिसके अनेक व्यक्तित्व हों।

फरनान्दो पैसोआ की मृत्यु के बाद उनके कमरे में लकड़ी की एक बड़ी-सी सन्दूक पाई गई, जो सीलबन्द लिफ़ाफ़ों से खचाखच भरी थी। इन लिफ़ाफ़ों में पैसोआ ने अपनी कविताएँ, नाटक, गद्य, सौन्दर्यशास्त्र पर लेख, साहित्यिक समालोचना, दर्शन पर निबन्ध तथा अप्रकाशित दैनिकी की मूल पांडुलिपियाँ जमा कर रखी थीं। इसी सामग्री से 1991 में एक पुस्तक तैयार की गई—‘दि बुक ऑव डिस्क्वाएट्यूड’। एक बेहद बेचैन, जीवन से विरक्त नौजवान के देखे हुए सपनों के वर्णन और उसके स्फुट विचारों का संग्रह। ‘एक बेचैन का रोज़नामचा’ इन्हीं अंशात्मक रचनाओं के प्रकाशित संग्रह में से संकलित किया गया है। अत्यधिक अस्त-व्यस्त रूप में पाई गई इन रचनाओं का नायक है बैरनार्दो सुआरैश जो फरनान्दो के बहत्तर नामों में से एक है। सुआरैश समय बिताने या जीवन से दूर भागने के लिए सपने नहीं देखता। वह सपने देखता है उस वस्तु को पाने के लिए जिसकी उसके जीवन में कमी है। इन सपनों की वास्तविकता से वह अपनी कला का निर्माण करता है जो उसका स्थायी आश्रय है, और जहाँ से परिस्थितियाँ अनुकूल होने पर वह फिर यथार्थ में लौटता है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2007
Edition Year 2007, Ed. 1st
Pages 128p
Translator Sharad Chandra
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1
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Author: Fernando Pessoa

फ़रनान्दो पैसोआ

एक पुर्तगाली कवि, लेखक, साहित्यिक आलोचक, अनुवादक, प्रकाशक और दार्शनिक पैसोआ का जन्‍म 13 जून, 1888 को लिस्‍बन, पुर्तगाल में हुआ था। पैसोआ 20वीं शताब्दी के महानतम कवियों में से एक माने जाते हैं। वे अल्बर्टो काइरो, अलवारो डी कैम्पोस, रिकार्डो रीस, बर्नार्डो सोरेस आदि सत्‍तर से ज्‍़यादा उपनामों से लिखते थे। ‘महारानी विक्टोरिया पुरस्कार’, ‘एंटेरो डी क्वेंटल अवार्ड’ आदि कई पुरस्‍कारों से सम्‍मानित पैसोआ पुर्तगाली भाषा के साथ-साथ अंग्रेज़ी और फ़्रेंच में भी लिखा करते थे। उनकी एक नहीं, कई कृतियाँ कालजयी हैं। उनका निधन 30 नवम्‍बर, 1935 को हुआ।

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