वर्तमान के ‘अँखुआते बीजों’ को इतिहास के ‘गजाकार’ पत्थरों से कुचलनेवाले इतिहास-बोध की पहचान से चलकर यह संग्रह वर्तमान के ज्योतिदंडों को ‘हैंड्स-अप’ की मुद्रा में सिर पर थामे खड़ी किशोरियों तक जाता है। ‘शराबी पिताओं/और लतखोर माताओं के/प्रेम और नफ़रत और बेचारगी की कमाई’ इन किशोरियों के लिए वह इतिहास-बोध जो इतिहास से पहिया उठाकर लाता है और अपने विजयरथ लेकर निकल पड़ता है, अपनी पुस्तकों से राहत का कोई रास्ता नहीं ढूँढ़ पाता। वह शायद ढूँढ़ भी नहीं पाएगा क्योंकि इतिहासविद् तो इतिहास के अन्त की भविष्यवाणी पहले ही कर चुके हैं।
लोकजीवन की विभिन्न छवियों, भाव और भाषा-भंगिमाओं, प्रकृति और साथ ही नागर जीवन के विभिन्न सकारात्मक-नकारात्मक चित्रों का सार्थक निर्वाह करनेवाली ये कविताएँ एक बार फिर से अष्टभुजा शुक्ल के अलगपन को रेखांकित करती हैं।
तुकान्त और छन्द की शक्ति का पुनराविष्कार करनेवाले कवि अष्टभुजा शुक्ल इस संग्रह की कुछ कविताओं में भी अपने अभीष्ट मन्तव्य को कोई ढील दिए बग़ैर कई याद रह जानेवाली तुकान्त पंक्तियाँ देते हैं। ‘भारत घोड़े पर सवार है’ कविता अपनी लय और साफ़गोई के लिए बार-बार याद की जाएगी। पाठकों की स्मृति को बराबर विचलित करनेवाली अन्य अनेक कविताएँ भी इस संग्रह में शामिल हैं। सौन्दर्य का नितान्त नया आलम्बन प्रस्तुत करनेवाली ‘पाँच रुपए का सिक्का’ हो, मितभाषी ‘मन:स्थिति’ हो, महँगे फलों को मुँह चिढ़ानेवाले अमरूदों के लिए लिखी कविता ‘तीन रुपए किलो’ हो या कुछ लम्बी कविताएँ—जैसे ‘किसी साइकिल सवार का एक असन्तुलित बयान’, ‘युगलकिशोर’, ‘यह बनारस है’, ‘पप्पू का प्रलाप’ और ‘गोरखपुर : तीन कविताएँ’, आदि, ये सभी कविताएँ इस संग्रह की उपलब्धि हैं और आधुनिक हिन्दी कविता-परम्परा की भी।
—शकीलुर्रहमान
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2004 |
Edition Year | 2004, Ed. 1st |
Pages | 116p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1.5 |