Dharm Wah Naav Nahin

Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Dharm Wah Naav Nahin
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ये कविताएँ इस कदर अच्छी हैं कि आन्तरिक सन्ताप, जीवन की व्याकुलता, महत्त्वाकांक्षी धार्मिकता की निस्सारता और साधारणता की महत्ता को नयी तरह से और कई कोणों से पुनर्परिभाषित करते हुए एक अलग काव्यात्मक ऊँचाई पर नजर आती हैं। परम्परा का यह एक नया और विकल कर देनेवाला पुनर्पाठ है।

—कुमार अम्बुज वरिष्ठ कवि

भद्रक के लिए बुद्ध के आख्‍यान में करुणा के अलावा कुछ भी वरेण्‍य नहीं है। उसका यह शिष्‍ट प्रतिवाद अलक्षित नहीं जाना चाहिए। वह जान चुका है कि बुद्ध के जिस धर्म को निर्दोष और सर्वोत्तम कह कर महिमा-मंडित किया गया है, वह कुलीनों और वर्चस्‍ववादी शक्तियों का एक पैंतरा भर है वरना थेरगाथा के वधित थेरीगाथा के वधिक नहीं हो सकते।

यह भी अलग से चिह्नित किया जाना चाहिए कि भद्रक बुद्ध के नाम से विज्ञापित युटोपिया का प्रतिवाद उसके ऐतिहासिक-सामाजिक फलितार्थों के आधार पर कर रहा है। भद्रक उन लोगों और स्थितियों के नाम-पते दर्ज़ करता है जिन्‍हें सत्ता ने कभी दरवाज़े से अन्दर नहीं आने दिया।

आज हम इतिहास के जिस छोर पर खड़े हैं, वहाँ से साफ़ दिखता है कि मैत्रेय बुद्ध अभी तक महज़ एक सम्भावना ही बने हुए हैं, लेकिन मैत्रेय भद्रक पिछले चौदह सौ बरसों से उस आदमी के लिए चिन्तित है, जिसके लिए धर्म का हर यूटोपिया अन्तत: डिस्‍टोपिया साबित हुआ है।

शिरीष की इन कविताओं को इसलिए याद रखा जाएगा कि उनमें संवेदना को प्रलाप और वैचारिकता को नारा नहीं बनने दिया गया।

—नरेश गोस्वामी आलोचक

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 160p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Shirish Kumar Mourya

Author: Shirish Kumar Mourya

शिरीष कुमार मौर्य

शिरीष कुमार मौर्य का जन्म 13 दिसम्बर, 1973 को नागपुर में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा उत्तराखंड के अंचल नौगाँवखाल में और उच्च शिक्षा कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल से प्राप्त की।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘पहला क़दम’, ‘शब्दों के झुरमुट’, ‘पृथ्वी पर एक जगह’, ‘जैसे कोई सुनता हो मुझे’, ‘दन्तकथा और अन्य कविताएँ’, ‘खाँटी कठिन कठोर अति’, ‘ऐसी ही किसी जगह लाता है प्रेम’, ‘साँसों के प्राचीन ग्रामोफ़ोन सरीखे इस बाजे पर’, ‘मुश्किल दिन की बात’, ‘रितुरैण’, ‘सबसे मुश्किल वक़्तों के निशाँ’, (स्त्री-संसार की कविताओं का संचयन), ‘ऐसी ही किसी जगह लाता है प्रेम’ (पहाड़ सम्बन्धी कविताओं का संचयन, सं. : हरीशचन्द्र पांडे) (कविता-संग्रह); ‘धनुष पर चिडि़या’ (चन्द्रकान्त देवताले की कविताओं के स्त्री-संसार का संचयन), ‘शीर्षक कहानियाँ’ (सम्पादन); ‘लिखत-पढ़त’, ‘शानी का संसार’, ‘कई उम्रों की कविता’ (आलोचना); ‘धरती जानती है’ (येहूदा आमीखाई की कविताओं का अनुवाद अशोक पांडे के साथ), ‘कू-सेंग की कविताएँ’ (अनुवाद)।

उन्हें प्रथम ‘अंकुर मिश्र कविता पुरस्कार’, ‘लक्ष्मण प्रसाद मंडलोई सम्मान’, ‘वागीश्वरी सम्मान’, ‘गिर्दा स्मृति जनगीत सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।

सम्प्रति : कुमाऊँ विश्वविद्यालय के ठाकुर देव सिंह बिष्ट परिसर, नैनीताल में हिन्दी के प्रोफ़ेसर तथा महादेवी वर्मा सृजनपीठ, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, रामगढ़ के निदेशक।

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