Chintamani : Vol. 3

Editor: Namvar Singh
Edition: 1983, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Chintamani : Vol. 3

चिन्तामणि का यह तीसरा भाग आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अब तक असंकलित ऐसे इक्कीस निबन्धों का अनूठा संग्रह है जो पुरानी पत्रिकाओं में बिखरे रहने और अप्राप्य पुस्तकों की भूमिका के रूप में प्रकाशित होने के कारण प्राय: दुर्लभ रहे हैं। इन निबन्धों में गोरखपुर के ‘स्वदेश’ में प्रकाशित ‘क्षात्रधर्म का सौन्दर्य’ और ‘प्रेमा’ में प्रकाशित ‘प्रेम आनन्द–स्वरूप है’ ऐसे निबन्ध हैं जिनकी जानकारी भी लोगों को नहीं है। ‘हंस’ के आत्मकथा अंक में प्रकाशित ‘प्रेमघन की छाया स्मृति’ भी ऐसा ही निबन्ध है जो लगभग अचर्चित रहा है, जबकि आचार्य के आरम्भिक जीवन की झाँकी के लिए वह अनमोल दस्तावेज़ है। ‘साहित्य’ और ‘उपन्यास’ शीर्षक आरम्भिक निबन्धों से जहाँ शुक्ल जी के एतद्विषयक अनुपलब्ध विचार पहली बार प्रकाश में आते हैं, वहाँ 1909 की ‘सरस्वती’ में प्रकाशित ‘कविता क्या है’ इसी शीर्षक के सर्वविदित परवर्ती निबन्ध के प्रथम प्रारूप की हैसियत से ऐतिहासिक महत्त्व रखता है। इसी प्रकार ‘कल्पना का आनन्द’ यद्यपि हाईस्कूल के एक छात्र का अनुवाद है, फिर भी आचार्य शुक्ल के ‘काव्य में प्राकृतिक दृश्य’ तथा ‘रसात्मक बोध के विविध रूप’ जैसे प्रौढ़ निबन्धों के लिए वह नींव का पत्थर है।

भूमिकाओं में यदि ‘विश्व प्रपंच’ की भूमिका आचार्य शुक्ल के जीवन–दर्शन के वैज्ञानिक पक्ष को जानने के लिए अनिवार्य दस्तावेज़ है तो ‘शेष स्मृतियाँ’ की ‘प्रवेशिका’ उनकी ऐतिहासिक अनुसन्धान में रुचि तथा गति के लिए। साहित्य–चिन्तक शुक्ल जी हिन्दी भाषा—मुख्यत: काव्यभाषा की भाषावैज्ञानिक तथा व्याकरणिक समस्याओं में कितनी अन्तर्दृष्टि रखते थे, इसका प्रमाण है ‘बुद्धचरित की भूमिका’ में ब्रजभाषा, अवधी और खड़ी बोली के स्वरूप का व्यतिरेकी विश्लेषण। इन भूमिकाओं के अतिरिक्त दो ऐतिहासिक भाषण भी संकलित हैं जिनसे आचार्य के व्यक्तित्व का एक नया पक्ष सामने आता है। इस प्रकार यह पुस्तक एक चिरकांक्षित आवश्यकता की पूर्ति का सारस्वत प्रयास है, जिसके महत्त्व का आभास सम्पादक की शोधपूर्ण भूमिका से हो सकता है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1983
Edition Year 1983, Ed. 1st
Pages 276p
Translator Not Selected
Editor Namvar Singh
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Acharya Ramchandra Shukla

Author: Acharya Ramchandra Shukla

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

 

उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िले में ‘अगौना’ नामक एक गाँव है, जहाँ 1884 ई. में आपका जन्म हुआ था। पिता चन्‍द्रबली शुक्ल मिर्ज़ापुर में क़ानूनगो थे, इसलिए वहीं के जुबली स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा पाई। 1901 में स्कूल की फ़ाइनल परीक्षा पास की। आगे की पढ़ाई इलाहाबाद की कायस्थ पाठशाला में हुई, लेकिन गणित में कमज़ोर होने के कारण एफ़.ए. की परीक्षा पास नहीं कर सके। नौकरी पहले–पहल एक अंग्रेज़ी ऑफ़िस में की, फिर मिशन स्कूल में ड्राइंग–मास्टर हुए। हिन्दी साहित्य के प्रति अनुराग प्रारम्‍भ से था। मित्र–मंडली भी अच्छी मिली, जिसकी प्रेरणा से लेखन–क्रम चल निकला। 1910 ई. तक लेखक के रूप में अच्छी–ख़ासी ख्याति प्राप्त कर ली थी। इसी वर्ष उनकी नियुक्ति ‘हिन्दी शब्दसागर’ में काम करने के लिए ‘नागरी प्रचारिणी सभा’, काशी में हुई। यह कार्य समाप्त होते–न–होते वे काशी हिन्‍दू विश्वविद्यालय में हिन्‍दी प्राध्यापक नियुक्त हुए। वहाँ 1937 ई. में बाबू श्यामसुन्‍दर दास की मृत्यु के बाद हिन्‍दी विभागाध्यक्ष–पद को सुशोभित किया। कोश–निर्माता, इतिहासकार एवं श्रेष्ठ निबन्‍धकार के रूप में सम्मानित हुए; कविता–कहानी और अनुवाद के क्षेत्र में भी दिलचस्पी दिखाई। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं—‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’, ‘जायसी ग्रन्थमाला’, ‘तुलसीदास’, ‘सूरदास’, ‘चिन्तामणि’ (भाग : 1–3), ‘रस मीमांसा’ आदि।

2 फरवरी, 1941 को आचार्य शुक्ल का देहावसान हुआ।

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