Cheri Ka Bageecha

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Author: Anton Chekhav
Translator: Rajendra Yadav
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Cheri Ka Bageecha

एंतोन चेख़व ने इस एक नाटक में जिस विराट ऐतिहासिक सचाई को पकड़ा है, वह शायद बहुत बड़े उपन्यास का विषय था। इसी सचाई के रेशों से बुना चेरी का बगीचा समूचे देश का प्रतीक बन उठा है। चेरी के बगीचे की मालकिन ‘श्रीमती रैनिकव्स्काया अपने आप में ही डूबी है। आशा, निराशा, सुख-दु:ख की यह निजी दुनिया बाहरी दबावों में और भी सिकुड़ती चली जाती है, लेकिन इस क़ैद से छूटकर बाहर आया एक छोटे-से दुकानदार का बेटा लोपाखिन समय को पहचानता है। औद्योगिक संस्कृति के उदय का यह नया-नया सम्पन्न व्यवसायी व्यक्ति, क्रूर और सख़्त हाथों से नया समाज बना रहा है। इस सन्दर्भ में अनुवादक राजेन्द्र यादव का कथन है : ‘चेख़व की रचनाओं की आत्मीयता, करुणा और ख़ास क़िस्म की निराश उदासी (लगभग आत्मदया जैसी) मुझे बहुत छूती है। मैं उसके प्रभाव से लगभग मोहाच्छन्न था। उसी श्रद्धा से मैंने इन नाटकों को हाथ लगाया था। रूसी भाषा नहीं जानता था, मगर अधिक से अधिक ईमानदारी से उसके नाटकों की मौलिक शक्ति तक पहुँचाना चाहता था। इसलिए तीन अंग्रेज़ी अनुवादों को सामने रखकर एक-एक वाक्य पढ़ता और मूल को पकड़ने की कोशिश करता। आधार बनाया मॉस्को के अनुवाद को। बाद में सुना, अनुवादों को पाठकों ने पसन्द किया, अनेक रंग-संस्थानों और रेडियो इत्यादि ने इन्हें अपनाया, पाठ्यक्रम में भी लिया गया।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1958
Edition Year 2020, Ed. 6th
Pages 80p
Translator Rajendra Yadav
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Editorial Review

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Anton Chekhav

Author: Anton Chekhav

एंतोन चेखव

जन्म : 17 जनवरी, 1860 (तागन रोग)।

पिता बन्‍धुआ मज़दूर थे। उन्होंने मालिक की पूरी क़ीमत चुकाकर स्वतंत्रता ख़रीदी और दुकान शुरू की। बचपन पिता के अनुशासनी अत्याचारों में बीता। लेखन के आधार पर ही डॉक्टरी की पढ़ाई की। कहानियाँ, नाटक, एकांकी लेखन।

मृत्यु : 2 जुलाई, 1904

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