Bihar : Ek Etihasik Adhyayan

History
As low as ₹250.00 Regular Price ₹250.00
In stock
Only %1 left
SKU
Bihar : Ek Etihasik Adhyayan
- +

बिहार में ऐतिहासिक गतिविधियों की शुरुआत उत्तरवैदिक काल से होती है। इस इलाक़े में ई.पू. छठी शताब्दी के दौरान विकास की गति तेज़ हो गई। प्रारम्भ में इसे मगध के नाम से जाना गया। राजगृह और गया का इलाक़ा प्रारम्भ में तथा मौर्यकाल के दौरान गंगा नदी के उत्तर और दक्षिण का इलाक़ा ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया। पाटलिपुत्र विश्व के प्रमुख नगरों में से एक हो गया। शुंग और कुषाण राजवंश के बाद सम्पूर्ण आधुनिक बिहार के इलाक़े पर किसी एक राजवंश का प्रशासनिक नियंत्रण नहीं रहा।

पूर्व मध्यकाल में आधुनिक बंगाल और उत्तर प्रदेश के शासकों ने बिहार को खंडित कर दिया। यह सिलसिला बाद के सैकड़ों वर्षों तक चलता रहा। मराठों का आधिपत्य भी इसके कुछ हिस्से पर स्थापित रहा।

शेरशाह और अकबर के ज़माने में बिहार का पुनः एक राजनीतिक नक़्शा तैयार हुआ।

अंग्रेज़ीकाल में बिहार का अस्तित्व बंगाल के उपनिवेश के समान 1912 ई. और उसके बाद तक बना रहा।

मौर्यकाल के बाद बिहार की आर्थिक स्थिति अफ़ग़ानों और मुग़लशासकों के काल में बेहतर हुई। बिहार के कई छोटे-छोटे क़स्बे आर्थिक बेहतरी और उद्योग के केन्द्र रहे। अंग्रेज़ीकाल में चीनी मिलें बिहार के क़रीब 30 स्थानों में स्थापित हुईं। बिहार में नदियों की भूमिका काफ़ी अनुकूल रही। तिरहुत की ज़मीन भारतवर्ष में सर्वाधिक उपजाऊ थी। भारतवर्ष में सबसे ज़्यादा पेय जल-सुविधा आज भी यहीं है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 608p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 3.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Bihar : Ek Etihasik Adhyayan
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Om Prakash Prasad

Author: Om Prakash Prasad

ओम् प्रकाश प्रसाद
डॉ. ओम् प्रकाश प्रसाद 1980 से स्नातकोत्तर इतिहास विभाग, पटना विश्वविद्यालय (बिहार) में प्राध्यापक (ऐसोशिएट प्रोफ़ेसर) के रूप में कार्यरत हैं। ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस’ में इनके क़रीब 10 शोध लेख प्रकाशित हैं। इसके गोल्डन जुबली वॉल्यूम (सम्पादक : वी.डी. चट्टोपाध्याय) में इनका चयनित शोध लेख प्रकाशित है। दिल्ली विश्वविद्यालय, हिन्दी कार्यान्वयन निदेशालय (दिल्ली-7), खुदाबख्श पब्लिक ओरियंटल लाइब्रेरी (पटना), के.पी. जायसवाल शोध संस्थान, पटना एवं अन्य मान्यता प्राप्त प्रकाशनों से डॉ. प्रसाद की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। राजकमल प्रकाशन से कलियुग पर प्रकाशित पुस्तक को इस विषय पर प्रथम पुस्तक की मान्यता मिली है। इस प्रकाशन से प्रकाशित होनेवाली दूसरी ‘पुस्तक प्राचीन विश्व का उदय एवं विकास’ है। डॉ. प्रसाद आजकल स्नातकोत्तर इतिहास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पढ़ाते हैं। डॉ. प्रसाद को ‘इंडियन काउंसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च’, नई दिल्ली से स्टडी ग्रांट, ट्रैवल ग्रांट, फ़ेलोशिप और पब्लिकेशन ग्रांट मिल चुका है। शोध-प्रबन्ध ‘डिके एंड रिवाइवल ऑफ़ मिडिवल टॉउन्स इन कर्नाटका’ के परीक्षक प्रोफ़ेसर रामशरण शर्मा और प्रोफ़ेसर एम.जी.एस. नारायणन थे।

Read More
Books by this Author

Back to Top