Bhartiya Lokparampara Mein Dahod

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Bhartiya Lokparampara Mein Dahod

प्राचीन भारतीय इतिहास, साहित्य एवं कला से ज्ञात होता है कि ‘दोहद’ ‘स्‍त्री एवं वृक्ष’ अभिप्राय (मोटिफ़) का एक लोकप्रिय प्रकार था। संस्कृत कवियों, ग्रन्थकारों एवं कोशकारों की इस शब्द की व्याख्या के अनुसार यह वृक्ष-विशेष की अभिलाषा का द्योतक था, जो इसकी पूर्ति की अपेक्षा स्‍त्री के क्रिया-विशेष से रखता था। प्रचलित लोकपरम्परा एवं सामान्य जन-अवधारणाओं को लक्ष्य में रखकर उन्होंने इसे ऐसे द्रव या द्रव्य का फूँक कहा है, जो वृक्ष, पौधों एवं लतादि में अकाल पुष्प-प्रसव की औषधि का कारक एवं शक्ति सिद्ध होता था। इनकी पृथक् आकांक्षाओं के रूप में प्रियंगु-दोहद, बकुल-दोहद, अशोक-दोहद, कुरबक-दोहद, कर्णिकार-दोहद एवं नवनालिका-दोहद आदि शब्दों का प्रचुर सन्दर्भ भारतीय साहित्य की उल्लेखनीय विशेषता है।

वृक्ष-दोहद (अभिलाषा) के समानार्थी प्रतीकात्मक उच्चित्रण विभिन्न कालों के कला-केन्द्रों के शिल्पांकनों में द्रष्टव्य हैं। आपातत: शृंगारिक अभिप्राय के बोधक वृक्ष-विषयक नाना दोहद-प्रकार कल्पित लगते हैं, पर विचारणीय है कि उनका निकट सम्बन्ध प्रचलित लोक-परम्परा एवं सामाजिक रीति-प्रथाओं से था, जिनकी संपृक्तता नारी जनों का उद्यान, उपवन एवं वाटिकाओं के साथ प्रेम था। इसका प्रतिबिम्ब वैदिक साहित्य, ‘महाभारत’, ‘रामायण’, संस्कृत प्राकृत काव्यों, नाटकों, रीतिकालीन साहित्य एवं प्रचलित लोकगीतों में भी प्राप्य है। तत्सम्बन्धी पाश्चात्य अवधारणाओं का परिशीलन तथा मिथक एवं यथार्थ को विश्लेषित करनेवाले तत्त्वों की मीमांसा भी दोहद-विषयक इस अध्ययन का लक्ष्य रहा है।

साथ ही, प्रसंगत: अरण्य-संरक्षण एवं लोकमंगल की अन्तर्निहित भावना का अन्योन्य सम्बन्ध तथा निर्वनीकरण-प्रक्रिया एवं वृक्ष-तक्षण की भर्त्सना पर लाक्षणिक ढंग से प्रकाश डालनेवाले प्रस्तुत प्रबन्ध के विविध अध्यायों में सटीक चित्रों सहित इस ललित कला-मुद्रा का विशद एवं एकत्र ऐतिहासिक परिचय रोचक एवं सारगर्भित भाषा में मुखरित है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 1997
Pages 55p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21 X 14 X 1
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Uday Narayan Rai

Author: Uday Narayan Rai

उदयनारायण राय

जन्म : 1928; ग्राम—बनकटा, जनपद—गोरखपुर (उ.प्र.।

शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा गोरखपुर से। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सन् 1951 में एम.ए. एवं डॉक्टर ऑफ़ फ़िलासफ़ी की उपाधि 1957 में। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ही इतिहास विभाग तथा तदुपरान्त प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग में क्रमानुसार लेक्चरर, रीडर, प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष। सन् 1989 ई. में अवकाश ग्रहण। 

विशेष : भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद् के सीनियर रिसर्च फ़ेलो, अगस्त सन् 1989 से। प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर इमेरिटस दिसम्बर 1991 से जून 1993 तक।

प्रकाशन : ‘प्राचीन भारत में नगर तथा नगर-जीवन’, ‘शालभञ्जिका’, ‘भारतीय कला’, ‘भारतीय लोक परम्परा में दोहद’, ‘गुप्त-राजवंश तथा उसका युग’, ‘विश्व सभ्यता का इतिहास’, ‘हमारे पुराने नगर’, आदि प्रमुख कृतियाँ हैं। अनेक शोध-पत्र राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

पुरस्कार एवं सम्मानोपाधियाँ : ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’, ‘आचार्य नरेन्द्रदेव पुरस्कार’, ‘इमेरिटस फ़ेलोशिप’, ‘विद्याभूषण सम्मान’ (उत्तर प्रदेश, हिन्दी संस्थान लखनऊ), ‘साहित्य वाचस्पति’ (मानद डी.लिट्.), इलाहाबाद विश्वविद्यालय में लगभग 40 वर्षों तक अनुसन्धान-कार्य का पर्यवेक्षण, अनेक अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में भाग एवं अध्यक्षता, शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक प्रसंगों में विदेशी राज्यों का पर्यटन—सोवियत भूमि (रूस), तुर्कमेनिस्तान (अश्काबाद), उज्बेकिस्तान (ताशकन्द), संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, वेल्स, फ़्रांस।

निधन : 16 नवम्बर, 2007

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