Bhartiya Diaspora : Vividh Aayam

Author: Ramsharan Joshi
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Bhartiya Diaspora : Vividh Aayam
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‘डायस्पोरा’ शब्द का मुख्य अर्थ है—अपने देश की धरती से दूर विदेश में बसना, अर्थात् ‘प्रवासन’। इसका लक्षण है विदेश में रहते हुए भी अपने देश की सांस्कृतिक परम्पराओं को निभाते रहना। आज दुनिया में अनेक तरह के डायस्पोरा समुदाय हैं और भारत को दुनिया के दूसरे सबसे बड़े डायस्पोरा समुदायों में गिना जाता है।

यह पुस्तक ‘भारतीय डायस्पोरा : विविध आयाम’ प्रवासन के अर्थ, विकास और प्रभाव पर महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करती है। इसके अनुसार, ‘आज का डायस्पोरा उन्नीसवीं सदी की अभिशप्त, प्रताड़ित और शोषित मानवता नहीं है। आधुनिक डायस्पोरा उत्तर-औपनिवेशिक और साम्राज्यवादी काल में राष्ट्र-राज्य (नेशन-स्टेट) के निर्माण और संचालन में निर्णायक भूमिका निभा रहा है। यही कारण है कि आज इस शब्द का प्रयोग विभिन्न देशों के मानव समूहों के विस्थापन, प्रवासन और पुनर्वसन के संसार को रेखांकित करने के लिए किया जाता है।’

पुस्तक में बारह लेख हैं जो भारतीय डायस्पोरा के बारे में मूल्यवान जानकारियाँ देते हैं। अन्त में दी गई पारिभाषिक शब्दावली से विषय के विविध आयाम सूत्रबद्ध होते हैं। आज जब भारतवंशी विश्व के विभिन्न देशों में रहते हुए उन देशों की समृद्धि व गतिशीलता में उल्लेखनीय योगदान कर रहे हैं, तब उनके ‘अस्मिता-विमर्श’ पर अध्ययन सामग्री की बहुत ज़रूरत है। यह पुस्तक इस अभाव को काफ़ह हद तक कम करती है। विशेषज्ञ लेखकों ने अपने अध्ययन व अनुसन्धान से प्रामाणिक सामग्री प्रस्तुत की है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 196p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Ramsharan Joshi

Author: Ramsharan Joshi

रामशरण जोशी

6 मार्च, 1944 में अलवर (राजस्थान) में जन्मे रामशरण जोशी पेशे से पत्रकार, सम्पादक, समाजविज्ञानी और मीडिया के अध्यापक रहे हैं। भारतीय जनसंचार संस्थान में विजिटिंग प्रोफ़ेसर। 1999 से 2004 तक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पूर्णकालिक प्रोफ़ेसर और कार्यपालक निदेशक के पद पर कार्यरत रहे। आप राष्ट्रीय बाल भवन के अध्यक्ष और केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष भी रहे हैं। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं। आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं—'आदमी, बैल और सपने’, 'आदिवासी समाज और विमर्श’, '21वीं सदी के संकट’, 'मीडिया विमर्श’, ‘यादों का लाल गलियारा : दंतेवाड़ा’, ‘मैं बोनसाई अपने समय का’,  आदि।

आपको बिहार सरकार द्वारा 'राजेन्द्र माथुर राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार’, मध्य प्रदेश सरकार का 'राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान’, हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'पत्रकारिता सम्मान’, 'गणेश शंकर विद्यार्थी साम्प्रदायिक सौहार्द पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है। फ़िलहाल नई दिल्ली में परिवार के साथ रहते हुए स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।

सम्‍पर्क : joshisharan1@gmail.com

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