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21vin Sadi Ke Sankat-E-Book

Author: Ramsharan Joshi
Edition: 2023, Ed. 4th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
Special Price ₹521.25 Regular Price ₹695.00
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9788126707089-ebook

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'आदमी, बैल और सपने' की ज़मीनी संघर्ष-कथाओं से चलकर सामाजिक बदलावों के चौकन्ने दर्शक रामशरण जोशी आज हिन्दी के उन विरल पत्रकारों में हैं जो 'विकसित' होकर 'एक्टिविस्ट-समाजशास्त्री' के रूप में अपनी पहचान बनाते हैं। उनकी 'समाज-समीक्षा' किताबी अध्ययन और कमराबन्द शास्त्रीय चिन्तन से नहीं, परिवर्तनकामी सामाजिक हलचलों के बीच परवान चढ़ी है। इसीलिए एक ओर वे 'आदिवासी समाज और शिक्षा' पर बात करते हैं तो दूसरी ओर आधुनिक 'मीडिया विमर्श' व 'मीडिया और बाज़ारवाद' के जंगलों में रास्ते तलाश करते हैं। उन्हें न देश की राजनीति को बनाने-बिगाड़ने वाले दिग्गज नेताओं को कठघरे में खड़ा करने में हिचकिचाहट होती है और न चुनावी उठा-पटक के बीच अगला प्रधानमंत्री खोज निकालने में। पिछले कार्यक्षेत्र की तरह उनका समाज-विश्‍लेषण भी जितना हॉरिजेंटल है, उतना ही वर्टिकल भी—वे समस्या के विस्तार में ही नहीं जाते, गहराई में भी उतरते हैं। उनके सरोकार और सम्बद्धता हर जगह वर्तमान और भविष्य से है-अतीत को उन्होंने 'सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों के लिए छोड़ दिया है, इसलिए हर समस्या और उपलब्धि को वेदों के खाते में डाल देने की आसान और उतावली विद्वत्ता से बचे रहे हैं।

'इक्कीसवीं सदी के संकट राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सामान्य जन के संघर्षों और भारत जैसे विकासशील देश पर मँडराते ख़तरों का निर्भीक विश्लेषण है। वे चाहे आधुनिकता के अर्धसत्यों के बहाने, अमेरिकी माफ़िया षड्‌यंत्रों की बात करें या बाज़ारवाद के साम्राज्यवादी मनसूबों की, निशाने पर चाहे सांस्कृतिक उत्पीड़न और देशी-विदेशी आतंकवाद हो या मानव, मशीन और राज्य की द्वन्द्वात्मकता—हर कहीं उनकी चिन्ता का केन्द्र अपना समाज और अपने देश की स्थितियाँ हैं। इसीलिए वे समझते हैं कि 'भारत में समाज, राष्ट्र और टेक्नोलॉजी के बीच अपेक्षित तालमेल नहीं रहा।' नतीजे में 'लोकतंत्र का लोकतांत्रीकरण नहीं हो पाया।'

विराट अनुभवों, विशाल अध्ययन और बौद्धिक भूलभुलैयों (लिबरिंथ) के बीच रामशरण जोशी की शक्ति है तार्किक दृष्टि, वैज्ञानिक विश्लेषण, विवेकवादी विमर्श और जनपक्षधर राजनीति। यहाँ उनकी मार्क्सवादी पृष्ठभूमि उनका सबसे विश्वस्त कुतुबनुमा है। इधर उनकी संवेदनाएँ रचनात्मक अभिव्यक्तियों के लिए कसमसाने लगी हैं और वे अपने अनुभवों को कथा-कहानी या आत्म-स्वीकृतियों का रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। पता नहीं क्यों, मुझे लगता है कि लम्बी बीहड़ भौतिक और बौद्धिक यात्राओं के बाद वे उस मोड़ पर आ गए हैं जिसे नरेश मेहता ने 'अश्व की वल्‍गा लो अब थाम, दिख रहा मानसरोवर तीर' कहकर पहचाना था। डिकेन्स से लेकर हैमिंग्वे, शाह ग्रीन, ज्याफ़्री आर्चर, भारत में अरुण साधु या भवानी सेन गुप्ता  (चाणक्य सेन) और हिन्दी में मनोहर श्याम जोशी जैसे उपन्यासकार पहले सक्रिय पत्रकार ही तो थे। आख़िर रामशरण ने भी अपनी शुरुआत 'आदमी, बैल और सपने' जैसी कथा-पत्रकारिता से ही तो की थी।

—राजेन्द्र यादव, सम्पादक—'हंस'

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Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2008
Edition Year 2023, Ed. 4th
Pages 183p
Price ₹695.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 15 X 2
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Ramsharan Joshi

Author: Ramsharan Joshi

रामशरण जोशी

6 मार्च, 1944 में अलवर (राजस्थान) में जन्मे रामशरण जोशी पेशे से पत्रकार, सम्पादक, समाजविज्ञानी और मीडिया के अध्यापक रहे हैं। भारतीय जनसंचार संस्थान में विजिटिंग प्रोफ़ेसर। 1999 से 2004 तक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पूर्णकालिक प्रोफ़ेसर और कार्यपालक निदेशक के पद पर कार्यरत रहे। आप राष्ट्रीय बाल भवन के अध्यक्ष और केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष भी रहे हैं। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं। आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं—'आदमी, बैल और सपने’, 'आदिवासी समाज और विमर्श’, '21वीं सदी के संकट’, 'मीडिया विमर्श’, ‘यादों का लाल गलियारा : दंतेवाड़ा’, ‘मैं बोनसाई अपने समय का’,  आदि।

आपको बिहार सरकार द्वारा 'राजेन्द्र माथुर राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार’, मध्य प्रदेश सरकार का 'राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान’, हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'पत्रकारिता सम्मान’, 'गणेश शंकर विद्यार्थी साम्प्रदायिक सौहार्द पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है। फ़िलहाल नई दिल्ली में परिवार के साथ रहते हुए स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।

सम्‍पर्क : joshisharan1@gmail.com

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