‘‘यह पुस्तक बीसवीं शताब्दी के अन्त और इक्कीसवीं शताब्दी के आरम्भ पर वैचारिक स्थिति, बल्कि स्थितियों पर एकाग्र एक अनूठा संचयन है। हमारे जाने हिन्दी में ऐसी कोई और पुस्तक नहीं है जिसमें इस तरह से व्यापक और कुशाग्र विचार किया गया हो। इस संचयन में दृष्टियों की बहुलता है; उनमें दार्शनिक, साहित्यिक, वैज्ञानिक, पारम्परिक आदि शामिल हैं। इस विचार में अन्त और आरम्भ की अवधारणाओं को भी प्रश्नांकित किया गया है। अभी हमारी नयी शताब्दी के दो दशक भी पूरे नहीं हुए हैं और सारे संसार में हिंसा, युद्ध, हत्या, धर्मोन्माद, अनुदारता आदि का भयावह विस्तार हुआ है। विचार मात्र को ध्यान और आवश्यकता के परिसर से देशनिकाला देने की लगातार कोशिश हो रही है। ऐसे मुक़ाम पर इस वैचारिक बहुमुखी हस्तक्षेप का महत्त्व है।’’
—अशोक वाजपेयी
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2018 |
Edition Year | 2018, Ed. 1st |
Pages | 279p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 2.5 |